रंग खेलकर, ढोल बजाकर, दे दी, क्योंकि थी महंगाई !!
कार्यक्रम !
जिनमें कार्य पूर्ण होने का, बना रहे आखिर तक भ्रम !!
अफसर !
उच्चपदी चरणों में बिछकर, मातहतों को डांटे जमकर !!
बाबू !
बिन बापू के छपे नोट वो, दिए नहीं आता है काबू !!
शिक्षा-अभियान !
जो हिंदी में गाली दे ले, उसको भी शिक्षित ही मान !!
चीन !
अपनी आबादी की ख़ातिर, कब्जाए निकटस्थ ज़मीन !!
हादसा !
मरने वाले के परिजन को, रह जाता है याद सा !!
महंगा !
छोटी सी स्कर्ट खरीदो, नहीं ज़रूरी, पहनो लहंगा !!
कला !
सरकारी चोरी कर ली पर, पता किसी को नहीं चला !!
सम्मान !
क्या यह हमको फ्री मिलेगा, अगर बेच डालें ईमान ??
पुरस्कार !
हो सकता है कि चुनाव से, पहले इसकी आये बहार !!
-अतुल मिश्र
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