ग़ज़ल
हम इधर देखें कि उधर देखें,
लोग देखें कि हम जिधर देखें,

तुझको बस,देख के,ऐ पर्दानशीं
सोचते हैं कि अब किधर देखें ?

तेरी नज़रों की शोख़ियों के लिए
दिल यह करता है,ता उमर देखें !

नज़रे-मय उसकी आज पीकर हम
कैसे होता है, क्या असर देखें !

रात भर तेरी याद में जगकर
कैसी होती है फिर सहर देखें !

ये ज़रूरी है मौत से पहले
ज़िन्दगी का सही, सफ़र देखें !

कल तलक तो मरा नहीं था 'अतुल'
आज अखब़ार की ख़बर देखें !
-अतुल मिश्र

1 Responses to रात भर तेरी याद में जगकर, कैसी होती है फिर सहर देखें

  1. वाणी गीत Says:
  2. ये ज़रूरी है मौत से पहले
    ज़िन्दगी का सही, सफ़र देखें ....

    क्या बात है ....जिन्दगी का सफ़र हम भी देखें ....!!
    नव वर्ष की बहुत शुभकामनायें ...!!

     

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