फ़िरदौस ख़ान
बुल्ले शाह पंजाबी के प्रसिध्द सूफ़ी कवि हैं। उनके जन्म स्थान और समय को लेकर विद्वान एक मत नहीं हैं, लेकिन ज़्यादातर विद्वानों ने उनका जीवनकाल 1680 ईस्वी से 1758 ईस्वी तक माना है। तारीख़े-नफ़े उल्साल्कीन के मुताबिक़ बुल्ले शाह का जन्म सिंध (पाकिस्तान) के उछ गीलानीयां गांव में सखि शाह मुहम्मद दरवेश के घर हुआ था। उनका नाम अब्दुल्ला शाह रखा गया था। मगर सूफ़ी कवि के रूप में विख्यात होने के बाद वे बुल्ले शाह कहलाए। वे जब छह साल के थे तब उनके पिता पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उछ गीलानीयां छोडक़र साहीवाल में मलकवाल नामक बस्ती में रहने लगे। इस दौरान चौधरी पांडो भट्टी किसी काम से तलवंडी आए थे। उन्होंने अपने एक मित्र से ज़िक्र किया कि लाहौर से 20 मील दूर बारी दोआब नदी के तट पर बसे गांव पंडोक में मस्जिद के लिए किसी अच्छे मौलवी की ज़रूरत है। इस पर उनके मित्र ने सखि शाह मुहम्मद दरवेश से बात करने की सलाह दी। अगले दिन तलवंडी के कुछ बुज़ुर्ग चौधरी पांडो भट्टी के साथ दरवेश साहब के पास गए और उनसे मस्जिद की व्यवस्था संभालने का आग्रह किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

इस तरह बुल्ले शाह पंडोक आ गए। यहां उन्होंने अपनी पढ़ाई शुरू की। वे अरबी और फ़ारसी के विद्वान थे, मगर उन्होंने जनमानस की भाषा पंजाबी को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया। प्रसिध्द 'क़िस्सा हीर-रांझा' के रचयिता सैयद वारिस शाह उनके सहपाठी थे। बुल्ले शाह ने अपना सारा जीवन इबादत और लोक कल्याण में व्यतीत किया। उनकी एक बहन भी थीं, जिन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर ख़ुदा की इबादत की।

बुल्ले शाह लाहौर के संत शाह इनायत क़ादिरी शत्तारी के शिष्य थे। बुल्ले शाह ने अन्य सूफ़ियों की तरह ईश्वर के निर्गुण और सगुण दोनों रूपों को स्वीकार किया। उनकी रचनाओं में भारत के विभिन्न संप्रदायों का प्रभाव साफ़ नज़र आता है। उनकी एक रचना में नाथ संप्रदाय की झलक मिलती है, जिसमें उन्होंने कहा है :

तैं कारन हब्सी होए हां,
नौ दरवाजे बंद कर सोए हां।
दर दसवें आन खलोए हां,
कदे मन मेरी असनाई॥
यानी, तुम्हारे कारण मैं योगी बन गया हूं। मैं नौ द्वार बंद करके सो गया हूं और अब दसवें द्वार पर खड़ा हूं। मेरा प्रेम स्वीकार कर मुझ पर कृपा करो।

भगवान श्रीकृष्ण के प्रति बुल्ले शाह के मन में अपार श्रध्दा और प्रेम था। वे कहते हैं :
मुरली बाज उठी अघातां,
मैंनु भुल गईयां सभ बातां।
लग गए अन्हद बाण नियारे,
चुक गए दुनीयादे कूड पसारे,
असी मुख देखण दे वणजारे,
दूयां भुल गईयां सभ बातां।

असां हुण चंचल मिर्ग फहाया,
ओसे मैंनूं बन्ह बहाया,
हर्ष दुगाना उसे पढ़ाया,
रह गईयां दो चार रुकावटां।

बुल्ले शाह मैं ते बिरलाई,
जद दी मुरली कान्ह बजाई,
बौरी होई ते तैं वल धाई,
कहो जी कित वल दस्त बरांता।

बुल्ले शाह हिन्दू-मुसलमान और ईश्वर-अल्लाह में कोई भेद नहीं मानते थे। इसलिए वे कहते हैं :
की करदा हुण की करदा
तुसी कहो खां दिलबर की करदा।
इकसे घर विच वसदियां रसदियां नहीं बणदा हुण पर्दा
विच मसीत नमाज़ गुज़ारे बुतख़ाने जा सजदा
आप इक्को कई लख घरां दे मालक है घर-घर दा
जित वल वेखां तित वल तूं ही हर इक दा संग कर दा
मूसा ते फिरौन बणा के दो हो कियों कर लडदा
हाज़र नाज़र ख़ुद नवीस है दोज़ख किस नूं खडदा
नाज़क बात है कियों कहंदा ना कह सकदा ना जर्दा
वाह-वाह वतन कहींदा एहो इक दबींदा इस सडदा
वाहदत दा दरीयायो सचव, उथे दिस्से सभ को तरदा
इत वल आये उत वल आये, आपे साहिब आपे बरदा
बुल्ले शाह दा इश्क़ बघेला, रत पींदा गोशत चरदा।

बुल्ले शाह मज़हब के सख्त नियमों को ग़ैर ज़रूरी मानते थे। उनका मानना था कि इस तरह के नियम व्यक्ति को सांसारिक बनाने का काम करते हैं। वे तो ईश्वर को पाना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने प्रेम के मार्ग को अपनाया, क्योंकि प्रेम किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करता। वे कहते हैं :
करम शरा दे धरम बतावन
संगल पावन पैरी।
जात मज़हब एह इश्क़ ना पुछदा
इश्क़ शरा दा वैरी॥

बुल्लेशाह का मानना था कि ईश्वर धार्मिक आडंबरों से नहीं मिलता, बल्कि उसे पाने का सबसे सरल और सहज मार्ग प्रेम है। वे कहते हैं :
इश्क़ दी नवियों नवी बहार
फूक मुसल्ला भन सिट लोटा
न फड तस्बी कासा सोटा
आलिम कहन्दा दे दो होका
तर्क हलालों खह मुर्दार।
उमर गवाई विच मसीती
अंदर भरिया नाल पलीती
कदे वाहज़ नमाज़ न कीती
हुण कीयों करना ऐं धाडो धाड।
जद मैं सबक इश्क़ दा पढिया
मस्जिद कोलों जियोडा डरिया
भज-भज ठाकर द्वारे वडिया
घर विच पाया माहरम यार।
जां मैं रमज इश्क़ दा पाई
मैं ना तूती मार गवाई
अंदर-बाहर हुई संफाई
जित वल वेखां यारो यार।
हीर-रांझा दे हो गए मेले
भुल्लि हीर ढूंडेंदी बेले
रांझा यार बगल विच खेले
मैंनूं सुध-बुध रही ना सार।
वेद-क़ुरान पढ़-पढ़ थक्के
सिज्दे कर दियां घर गए मथ्थे
ना रब्ब तीरथ, ना रब्ब मक्के
जिन पाया तिन नूर अंवार।
इश्क़ भुलाया सिज्दे तेरा
हुण कियों आईवें ऐवैं पावैं झेडा
बुल्ला हो रहे चुप चुपेरा
चुक्की सगली कूक पुकार।
बुल्लेशाह अपने मज़हब का पालन करते हुए भी साम्प्रदायिक संकीर्णताओं से परे थे। वे कहते हैं :
मैं बेक़ैद, मैं बेक़ैद
ना रोगी, न वैद।
ना मैं मोमन, ना मैं काफ़र
ना सैयद, ना सैद।

बुल्ले शाह का कहना था कि ईश्वर मंदिर और मस्जिद जैसे धार्मिक स्थलों का मोहताज नहीं है। वह तो कण-कण में बसा हुआ है। वे कहते हैं :
तुसी सभनी भेखी थीदे हो
हर जा तुसी दिसीदे हो
पाया है किछ पाया है
मेरे सतगुर अलख लखाया है
कहूं बैर पडा कहूं बेली है
कहूं मजनु है कहूं लेली है
कहूं आप गुरु कहूं चेली है
आप आप का पंथ बताया है
कहूं महजत का वर्तारा है
कहूं बणिया ठाकुर द्वारा है
कहूं बैरागी जटधारा है
कहूं शेख़न बन-बन आया है
कहूं तुर्क किताबां पढते हो
कहूं भगत हिन्दू जप करते हो
कहूं घोर घूंघट में पडते हो
हर घर-घर लाड लडाया है।
बुल्लिआ मैं थी बेमोहताज होया
महाराज मिलिया मेरा काज होया
दरसन पीया का मुझै इलाज होया
आप आप मैं आप समाया है।
कृष्ण और राम का ज़िक्र करते हुए वे कहते हैं :
ब्रिन्दाबन में गऊआं चराएं
लंका चढ़ के नाद बजाएं
मक्के दा हाजी बण आएं
वाहवा रंग वताई दा
हुण किसतों आप छपाई दा।

उनका अद्वैत मत ब्रह्म सर्वव्यापी है। वे कहते हैं :
हुण किस थी आप छपाई दा
किते मुल्ला हो बुलेन्दे हो
किते सुन्नत फ़र्ज़ दसेन्दे हो
किते राम दुहाई देन्दे हो
किते मथ्थे तिलक लगाई दा
बेली अल्लाह वाली मालिक हो
तुसी आपे अपने सालिक हो
आपे ख़ल्कत आपे ख़ालिक हो
आपे अमर मारूफ़ कराई दा
किधरे चोर हो किधरे क़ाज़ी हो
किते मिम्बर ते बेह वाजी हो
किते तेग बहादुर गाजी हो
आपे अपना कतक चढाई दा
बुल्ले शाह हुण सही सिंझाते हो
हर सूरत नाल पछाते हो
हुण मैथों भूल ना जाई दा
हुण किस तों आप छपाई दा।

बुल्ले शाह का मानना था कि जिसे गुरु की शरण मिल जाए, उसकी ज़िन्दगी को सच्चाई की एक राह मिल जाती है। वे कहते हैं:
बुल्ले शाह दी सुनो हकैत
हादी पकड़िया होग हदैत
मेरा मुर्शिद शाह इनायत
उह लंघाए पार
इनायत सभ हूया तन है
फिर बुल्ला नाम धराइया है

भले ही बुल्ले शाह की धरती अब पाकिस्तान हो, लेकिन भारत में भी उन्हें उतना ही माना जाता है, जितना पाकिस्तान में। अगर यह कहा जाए कि बुल्ले शाह भारत और पाकिस्तान के महान सूफ़ी शायर होने के साथ इन दोनों मुल्कों की सांझी विरासत के भी प्रतीक हैं तो ग़लत न होगा। आज भी पाकिस्तान में बुल्ले शाह के बारे में कहा जाता है कि 'मेरा शाह-तेरा शाह, बुल्ले शाह'।

1 Responses to मेरा शाह-तेरा शाह, बुल्ले शाह

  1. mohd maqsud inamdar Says:
  2. bahut acha likha hai aap ne

     

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