अशोक हांडू
8.6 प्रतिशत तिमाही विकास दर के बाद यह अब 8.8 प्रतिशत है। भारत की अर्थव्यवस्था में जून को खत्म होने वाले इस वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में 8.8 प्रतिशत की वृध्दि हुई है जबकि मार्च को खत्म हुए अंतिम तिमाही में 8.6 प्रतिशत की वृध्दि हुई थी। 2007 से अभी तक का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। यह अर्थव्यवस्था पिछले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में सिर्फ 6 प्रतिशत बढ़ी थी।
यह उल्लेखनीय प्रदर्शन निर्माण एवं सेवा क्षेत्र में उच्च विकास के कारण प्राप्त किया गया है। मंगलवार को केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी किए गए डाटा ने विनिर्माण क्षेत्र में 12.4 प्रतिशत की वृध्दि को दर्शाया है। पिछले वर्ष पहली तिमाही में यह सिर्फ 3.8 प्रतिशत थी। निर्माण में 7.5 प्रतिशत और खनन में 8.9 प्रतिशत की वृध्दि हुई है। इस तिमाही में कृषि, वन एवं मत्स्य क्षेत्र में 2.8 प्रतिशत की हल्की वृध्दि हुई लेकिन यह पिछले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में हुई 1.9 प्रतिशत की वृध्दि से अधिक है। इस वर्ष अच्छे मानसून द्वारा आने वाले महीनों में कृषि उत्पादन में वृध्दि होने की संभावना है जिससे विकास प्रक्रिया को और बढ़ावा मिलेगा।
इस प्रदर्शन को देखते हुए विश्लेषकों का यह मानना है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष के अन्त में भारत की विकास दर 8.5 से 9 प्रतिशत के बीच हो सकती है - यह एक आंकड़ा है जो भारत वर्ष दर वर्ष के बाद तब तक प्राप्त करता रहा है जब तक कि वैश्विक आर्थिक संकट ने विश्व भर की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित नहीं किया था। अभी तक सरकार ने वर्तमान वित्तीय वर्ष में अर्थव्यवस्था की विकास दर 8.5 प्रतिशत होने की भविष्यवाणी की थी जबकि 2009-10 में अर्थव्यवस्था की वार्षिक विकास दर 7.4 प्रतिशत थी। जैसाकि वित्त मंत्री श्री प्रणब मुखर्जी ने इसे इस प्रकार रखा, ''ये आंकडे बिल्कुल प्रोत्साहित करने वाले हैं.......... मैं आशा करता हूँ कि विकास के इस स्तर को बनाए रखना संभव होगा।''
प्रथम तिमाही का यह प्रदर्शन भारतीय रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अपनी कड़ी मुद्रा नीति को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करता रहेगा। मुद्रास्फीति इस सरकार के लिए प्रमुख चिन्ता का विषय रहा है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने अभी तक वर्तमान वित्तीय वर्ष में महत्त्वपूर्ण ब्याज दरों को चार बार बढ़ाया है, यह इस राह पर सावधानी पूर्वक कदम रख रहा है ताकि ऐसा न हो कि भारी वृध्दि विकास प्रक्रिया को नुकसान पहुँचाए। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक अब महत्वपूर्ण दरों में और वृध्दि नहीं करेगा। लेकिन इसे देखने के लिए 16 सितम्बर तक प्रतीक्षा करनी होगी । जब भारतीय रिजर्व बैंक आर्थिक रिपोर्ट की अपनी समीक्षा प्रस्तुत करेगा तभी पता चल सकेगा कि महत्वपूर्ण दरों के मुद्दे पर बैंक क्या दृष्टिकोण अपनाता है।
ऊपर चढ़ती मुद्रास्फीति दो अंकों के स्तर से घटकर 9.97 प्रतिशत तक आ गई जो फरवरी से अभी तक का न्यूनतम स्तर है और ऐसी संभावना है कि अच्छी फसलों के मद्देनजर इसमें और कमी आएगी।
बढ़ती मंहगाई ने सबसे अधिक निर्धनों को चोट पहुँचाई है क्योंकि वे लोग अपनी आय का अधिकांश हिस्सा भोजन पर खर्च करते हैं। हालांकि खाद्य मुद्रास्फीति भी नीचे आ रही है लेकिन अभी भी यह 16.6 प्रतिशत के स्तर पर बनी हुई है। लेकिन अच्छी बात यह है कि बाजार में नई फसलों के आगमन के साथ ही इसके नीचे आने की संभावना है। लोगों को और खासतौर पर गरीब लोगों को इससे राहत मिलेगी। सरकार को यह विश्वास है कि यह मुद्रास्फीति की दर को घटाकर इस कैलेंडर वर्ष के अन्त तक 6 प्रतिशत तक ले आएगी। हालांकि कृषि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 18 प्रतिशत का ही योगदान करती है लेकिन यह अपनी एक अरब बीस करोड़ आबादी के आधे हिस्से को भोजन प्रदान करती है। इस प्रकार इसके महत्व को कम नहीं किया जा सकता।
भारतीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए विकास प्रक्रिया में सूक्ष्म, लघु एवम मध्यम उद्यमों का महत्व भी महत्त्वपूर्ण है। जैसा कि राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रदर्शन करने वालों को राष्ट्रीय पुरस्कार देते हुए कहा था कि यह विनिर्माण उत्पादन का लगभग 45 प्रतिशत है, औद्योगिक इकाईयों की संख्या का 95 प्रतिशत और निर्यात का 40 प्रतिशत है। इसके इलावा यह क्षेत्र लगभग 6 करोड़ लोगों को अधिकांश तौर पर देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार प्रदान करता है जिसकी वजह से यह कृषि क्षेत्र के बाद रोजगार का सबसे बड़ा स्त्रोत है। यह क्षेत्र देश में स्वदेशी आन्दोलन के दर्शन का भी प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि ग्रामीण एंव खादी उद्योग इस क्षेत्र के बड़े हिस्से का गठन करते हैं। इस प्रकार इस क्षेत्र का विकास ही सम्मिलित विकास की कुंजी है क्योंकि यह क्षेत्र भारत के भविष्य में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।
इस बात को समझते हुए राष्ट्रपति ने इस क्षेत्र में बेहतर प्रोद्योगिकी, ऋण सुविधाओं और विपणन संरचनाओं में सुधार लाकर उचित ध्यान देने की मांग की ताकि इस क्षेत्र को समर्थन दिया जा सके। यह क्षेत्र सभी स्तरों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है। व्यक्तिगत स्तर पर कम टर्नओवर होने के कारण यह महंगी प्रौद्योगिकी को वहन नहीं कर सकता। बैंक इसे एक कमजोर क्षेत्र मानते हैं और इसलिए इसे पर्याप्त धन उधार देने से हिचकिचाते हैं। लेकिन इस क्षेत्र को जीवित रखने के लिए समय पर वित्तीय सहयोग पूर्ण रूप से आवश्यक है नहीं तो छोटी इकाइयों पर उनके अस्तित्व खत्म होने का संकट मंडरा रहा है। विपणन के क्षेत्र में भी घरेलू अन्तराष्ट्रीय व्यापार मेलों का आयोजन करके इसे बेहतर मौका जाने की आवश्यकता है।
संदर्भ के तहत इस तिमाही में घरेलू मांग में निम्न विकास भी चिन्ता का विषय है। आंकडे यह दर्शाते है कि जमीनी स्तर पर उपभोग में अभी भी तेजी नहीं आई है हालांकि कारों की बिक्री में जुलाई में 38 प्रतिशत की वृध्दि हुई, लेकिन यह उछाल मध्यम एवम उच्च आय समूहों के व्यय करने के तरीके को दर्शाता है।
पिछले दो कठिन वर्षों की तरह ही अर्थव्यवस्था को विकास के लिए घरेलू मांग पर निर्भर करना होगा। इस तिमाही में निर्यात में सिर्फ 13 प्रतिशत की वृध्दि हुई जोकि 6 महीनों में सबसे धीमी है। यह परम्परागत यूरोपीय बाजारों में धीमे आर्थिंक सुधार को सूचित करता है। व्यापारिक निर्यात के सम्बन्ध में भी ऐसी ही स्थिति थी क्योंकि इस क्षेत्र में जुलाई में 13.2 प्रतिशत की ही वृध्दि हुई। हालांकि निर्यात का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान सिर्फ 20 प्रतिशत है जबकि चीन में यह आकड़ा लगभग 38 प्रतिशत है, लेकिन औद्योगिक उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा वस्तु-कीमतों जैसे बाहरी कारकों से प्रभावित होता है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि विकास अनुमानित राह पर है। इस वित्तीय वर्ष में सम्पूर्ण सकल घरेलू उत्पाद का विकास 8.5 प्रतिशत से थोड़ा बेहतर होगा। औद्योगिक निकायों को यह विश्वास है कि यह गति 2010-11 में 9 प्रतिशत के आकड़े को छूने के लिए पर्याप्त होगी। लेकिन यह हो पाता है कि नहीं यह देखने के लिए हमें प्रतीक्षा करनी होगी।
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह हमेशा इस बात पर जोर देते रहे हैं कि करोड़ों भारतीयों को गरीबी से बाहर निकालने के लिए राष्ट्र को दो अंकों की विकास दर की आवश्यकता है। भारत विश्व की दूसरी सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है जिसे वर्तमान वित्तीय वर्ष की शेष तीन तिमाहियों में और बेहतर आकड़ें प्राप्त करने के लिए और प्रयास करने की आवश्यकता है। इसके लिए सतत प्रयास और सावधानी से निगरानी में रखी गई आर्थिंक एवम मौद्रिक नीति की आवश्यकता है।
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