तरित मुखर्जी
 'अधिक रक्तदान अधिक जीवन' विश् रक्तदाता दिवस के लि इस साल का ध्येय वाक्य है। इस दिवस का आयोजन विश् स्वास्थ् संगठन करता है। दरअसल हर दूसरे सेंकेंड पर किसी किसी को रक् की जरूरत होती है। हमारा रक् किसी भी समय एक से अधिक जीवन में मदद कर सकता है। दुर्घटना पीड़ितों, समय से पहले जन् लेने वाले शिशुओं, बड़े ऑपरेशन से गुजर रहे मरीजों को पूर्ण रक् की जरूरत होती है और ऐसी परस्थितियों में परीक्षण के बाद रक् सीधे चढ़ाया जाता है। लेकि अभिघात, रक्ताल्पता या अन् ऑपरेशन के समय केवल लाल रक् कोशिकाओं की जरूरत पड़ती है जो रक् से अलग की जाती हैं। रक् के अवयवों को अलग करने की प्रक्रिया सीटाफेरेसि कहलाता है। इसी प्रकार , कैंसर रोगियों को कीमोथैरेपी के दौरान रक् प्लेटलेट्स की जरूरत होती है, डेंगू के मरीज को भी प्लेटलेट्स चढ़ाया जाता है। जि मरीजों को ज्यादा रक्ताधान होता है उन्हें ताजा फ्रोजेन प्लाज्मा चढ़ाया जाता है, प्लाज्मा झुलसे एवं जल गए मरीजों को चढ़ाया जाता है। हीमोफीलिया के मरीज के लि क्रायोपेसिटेट का इस्तेमाल किया जाता है।   रक् की नियमि अंतराल पर और हर वक् जरूरत होती है क्योंकिइसका निश्चि समय तक ही भंडारण किया जा सकता है। लाल रक् कोशिकाएं 42 दिनों के लि भंडारि की जा सकती हैं जबकिताजा फ्रोजेन प्लाज्मा और क्रायोपेसिटेट का 365 दि के लि भंडारण हो सकता है और रक् प्लेटलेट्स पांच दि के लि भंडारि हो सकती है। रक् में 60 फीसदी हिस्सा द्रव और 40 फीसदी भाग ठोस होता है। द्रव वाला हिस्सा प्लाज्मा कहलाता है और उसमें 90 फीसदी पानी तथा 10 फीसदी पोषक तत् एवं हार्मोन होते हैं। इन तत्वों का आसानी से भोजन एवं दवाओं से स्थापन् किया जा सकता है जबकिलाल रक् कोशिकाएं, श्वेत रक् कोशिकाएं एवं प्लेटलेट्स के नष् होने के बाद उनके स्थापन् में अच्छा खासा समय लगता है।
      रक् जीवन बल के रूप में देखा जाता है तथा यह अपने आप में जीवन का प्रतीक है। मानव रक् की हमेशा मांग रहती है और रक्तदाताओं का रक् केंद्र के लि काफी महत् है। अतएव जन स्वास्थ् के लि सुरक्षि रक् की आपूर्ति प्राथमिकता है। रक्तदाता के रक् देने के फैसले का एक विश्लेषण एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से होता है ताकि‍‍रक्तदान की कुशलता को बढ़ाया जा सके तथा रक्तदाता समूह को कायम रखा जा सके। रक्तदान का फैसला कई कारकों से प्रेरि होता है। यह सुविदि है किरक् दान के दौरान कुछ लोगों को बहुत चिंता सताने लगती है और ऐसा पुराने रक्तदाताओं की तुलना में पहली बार रक्तदान कर रहे लोगों में ज्यादा देखा जाता है। जि लोगों को रक्तदान से डर लगता है उनके लि चिंता से मुक् करने के लि खास आचरण संबंधी तकनीकी (एएमटी) अपनायी जाती है। इस सारी कवायद का लक्ष् रक्तदाता की अनुक्रिया और अनुभव पर एएमटी का प्रभाव और रक्तदाता का एएमटी के प्रतिदृष्टिकोण का पता लगाया जाता है।
       रक् जीवन को बनाए रखने वाला द्रव् है जो शरीर के हृदय, धमनियां, शिराओं और केशिकाओं में प्रवाहि होता रहता है। रक् शरीर में पोषक तत्, इलेक्ट्रोलायट, हार्मोन, विटामि , रोगप्रतिकारकों, उष्मा और ऑक्सीजन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाता है। रक् शरीर के अपशिष् पदार्थों, कार्बन डाइऑक्साइड  को शरीर से बाहर निकालने में भी मदद करता है। रक् संक्रमण से लड़ता तथा घाव भरने में मदद करता है, इस प्रकार वह व्यक्तिको स्वस् रखता है।  हमारे शरीर के वजन का सात फीसदी हिस्सा हमारा रक् ही है। श्वेत रक् कणिकाएं संक्रमण के खिलाफ हमारे शरीर की प्राथमि रक्षा पंक्तिहै। श्वेत रक् कोशिकाओं का प्रकार ग्रैन्यूलोकाइटस बैक्टेरिया का पता लगाने और उसे नष् करने के लि रक् वाहिकाओं की दीवार पर लुढ़कता रहता है। लाल रक् कोशिकाएं शरीर के अंगों तथा उत्तकों तक ऑक्सीजन पहुंचाती हैं। दो तीन बूद रक् में करीब एक अरब लाल रक् कोशिकाएं होती हैं। लाल रक् कोशिकाएं परिसचंरण तंत्र 120 दिनों तक रहती हैं। रक्त प्लेटलेट्स रक् थक्कारण में मदद करते हैं और ल्यूकेमिया एवं कैंसर से ग्रस् रोगियों को जीवन का अवसर उपल्बध कराते हैं। रक् कोशिकाओं से बना होता है जो द्रव में तैरती रहती हैं। प्लाज्मा में तीन तरह की कोशिकाएं तैरती रहती हैं-लाल रक् कोशिकाएं जो ऑक्सीजन के परिवहन का कार्य करती हैं, श्वेत रक् कोशिकाएं जो संक्रमण से लड़ती हैं और प्लेटलेट्स जो खून बहने के दौरान थक्का बनाती है।

       रक् का सबसे सामान् वर्गीकरण एबीओ होता है। लाल रक् कोशिकाओं में प्रोटीन आवरण होता है जो उन्हें अन् से अलग करता है। इसके अनुसार रक् को चार वर्गों में बांटा जा सकता है।  
       (जहां प्रोटीन मौजूद होता है), बी (जहां बी प्रोटीन उपस्थि होता है), एबी (जहां एबी प्रोटीन मौजूद होता है) और (जहां कोई प्रोटीन नहीं होता) इस वर्गीकरण के अंदर उपवर्गीकरण (1, 2 1बी या 2बी)  भी होता है। इनमें से कुछ तो बड़े दुर्लभ होते हैं। इसके अलावा एक और प्रोटीन होता है जो रक् के वर्गीकरण में अहम भूमिका निभाता है। इसे आरएच फैक्टर कहा जाता है। यदियह मौजूद होता है तो उस रक् वर्ग को धनात्मक कहा जाता है और यदिअनुपस्थि होता है तो उसे ऋणात्मक कहा जाता है।
       रक् तैयार नहीं किया जा सकता है, यह केवल दान दिया जा सकता है। इसका मतलब है किकोई भी उस व्यक्तिकी जान बचा सकता है जिसे रक् की जरूरत है। हर साल भारत में 2500 सीसी की चार करोड़ यूनि रक् की जरूरत पड़ती है, जिसमें से केवल 500,000 रक् यूनि ही उपलब् हो पाता है। कोई भी बस थोड़ा सोचे और यह कहते हुए थोड़ा प्रयास करे कि'' 18 साल से अधि उम्र और 50 किलोग्राम से अधि वजन का कोई भी व्यक्तिरक्तदान कर सकता है। ''

      रक्तदान करने से पहले व्यक्ति को तीन घंटे पहले अच्छी तरह भोजन कर लेना चाहिए। रक् दान के बाद दि जाने वाला स्नैक उसे जरूर खाना चाहि क्योंकियह खाना बहुत ही महत्वपूर्ण है। रक् दान करने वाले व्यक्तिको बाद में अच्छा खानपान करने की सलाह दी जाती है। रक्तदान के दि रक् दान करने से पहले ध्रूमपान कतई नहीं करना चाहिए। यदिकिसी व्यक्तिने रक्तदान से 48 घंटे पहले शराब का सेवन किया है तो वह रक्तदान नहीं कर सकता है।

        रक्तदान के बारे में कई गलतफहमियां हैं। अकसर रक्तदाता सोचते हैं किरक्तदान के बाद वे कमजोर हो जाएंगे, थक जाएंगे, समान् रूप से काम नहीं कर पाएंगे, शराब का सेवन नहीं कर पाएंगे, रक्तदान के समय उन्हें दर्द होगा, एड्स से संक्रमि हो सकते है लेकि रक्तदाता को ऐसा कुछ नहीं होता है। रक्तदान हमेशा अच्छी बात है क्योंकिइससे लोगों की जान बचती है।
      रक्तदान दयालुता का प्रती और इसके माध्यम से आप अपने अन् मानव साथियों की देखभाल करते हैं। रक्तदान से बड़ा कोई उपहार नहीं है क्योंकियह उस व्यक्तिके लि जीवन उपहार है जो रक् ग्रहण करता है।

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