आज 'दैनिक जागरण' में गुमनामी में खोई बौद्ध धर्म की एक विरासत एक रिपोर्ट शाया हुई है...

बिहारशरीफ (संतोष कुमार). बिहार में राजगीर के वैभारगिरी पर्वत पर बौद्ध धर्म से जुड़ी एक ऐतिहासिक गुफा गुमनामी के अंधेरे में है। सरकारी उपेक्षा के चलते गुफा जीर्ण-शीर्ण दशा में पहुंच चुकी है।

बौद्ध धर्मावलंबियों की गुफा से गहन आस्था जुड़ी है। 2550 साल पहले भगवान बुद्ध के निर्वाण के बाद धर्म संचालन में आई मुश्किलों से कैसे निपटा जाए, इस पर मंथन करने के लिए बौद्ध भिक्षुओं ने राजगीर को ही चुना था। इतिहासकारों के अनुसार यहां विश्व के 400 बौद्ध भिक्षु जुटे और वैभारगिरी पर्वत की गुफा में विचार कर बौद्ध धर्म की बाइबिल 'त्रिपिटक' [धर्मग्रंथ] की रूपरेखा तैयार की। त्रिपिटक में सुत्त [इतिहास] विनय [नियम-कानून] एवं अभिधम्म [धर्म] को एक साथ पिरोया गया है। भगवान बुद्ध के निर्वाण के बाद तीसरे महीने बौद्ध भिक्षुओं की प्रथम संगीति [पंच सतिका] वैभारगिरी पर्वत की गुफा में ही हुई थी। वैसे अलग-अलग कारणों से यह पहाड़ी जैन, हिंदू एवं बौद्ध तीनों धर्म के लिए तीर्थस्थल का महत्व रखती है।

पहाड़ी पर प्राचीन मगध साम्राज्य के राजा जरासंध का बनवाया शिव मंदिर एवं जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी का मंदिर है। पर्वत शिखर पर इन मंदिरों के थोड़ा नीचे दो मुंह वाली गुफा है, जिसमें बौद्ध भिक्षुओं की प्रथम संगीति हुई थी। गुफा में पत्थरों पर इसके इतिहास की इबारत लिखी है। नव नालंदा महाविहार के निदेशक डा. रवींद्र पंथ वैभारगिरी पर्वत पर स्थित इस गुफा के बारे में बताते है कि राजा अजातशत्रु के जमाने में यहां बौद्ध धर्मावलंबियों की प्रथम संगीति हुई थी। इस संगीति में सुत्त पिटक, विनय पिटक व अभिधम्म पिटक को एक साथ पिरोने की कवायद हुई थी। जिसके बाद बौद्ध धर्मग्रंथ त्रिपिटक अस्तित्व में आया। इस गुफा को विकसित कर पर्यटन लायक बना दिया जाए तो दुनिया भर के बौद्ध भिक्षुओं व धर्मालंबियों के लिए यह आकर्षण का केंद्र बन जाएगी।

गुफा में अंदर 20-25 मीटर तक पैदल जाया जा सकता है। इसके बाद रास्ता संकीर्ण है। आगे रेगकर ही आगे बढ़ा जा सकता है। फिलहाल गुफा के इर्द-गिर्द झाड़ियां उग आई हैं।

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    अंदाज़-ए-बयां

    एक परवाज़ दिखाई दी है
    तेरी आवाज़ सुनाई दी है


    जिसकी आंखों में कटी थीं सदियां
    उसने सदियों की जुदाई दी है
    -गुलज़ार

    बस एक क्षण

    मैं तुम्हारे साथ कुछ देर बैठना चाहता हूं
    अपने अधूरे छूटे काम मैं फिर से पूरे कर लूंगा
    तुम्हारे चेहरे से दूर मेरे हृदय को एक क्षण के लिए भी शांति नहीं मिलती
    मेरे कार्यभार तटरहित समुद्र की तरह विशाल हो जाता है
    और अब ग्रीष्म ऋतु की सांसें और सरसराहट मेरी खिड़की पर सुनाई दे रही हैं
    मधुमक्खियां फूलों के दरबार में नृत्य कर रही हैं
    तब लगता है ये तुम्हारे साथ खामोशी से बैठने और फुरसत से
    जीवन के गीत गाने के क्षण हैं
    -गीतांजलि से

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    रवायतें अपनी-अपनी

    मेरे घर की अगर उपेक्षा, कर तू जाए राही
    तुझ पर बादल-बिजली टूटे, तुझ पर बादल बिजली

    मेरे घर अगर दुखी मन, हो तू जाए राही
    मुझ पर बादल-बिजली टूटे, मुझ पर बादल-बिजली
    -मेरा दागिस्तान से

    आज का पंचांग

    आज का पंचांग
    तिथि संवत- मिति मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी, संवत् 2066, शाके 1931, रवि दक्षिणायने, हेमंत ऋतु, 17 जिल्काद, हिजरी सन् 1430, 6 नवंबर शुक्रवार...सूर्योदय कालीन नक्षत्र-मृगशीर्ष नक्षत्र दोपहर 2.19 तक पश्चात आद्र्रा, शिव योग तथा बालवकरण (भारतीय समयानुसार). ग्रह विचार-सूर्य, बुध व शुक्र- तुला, गुरु, राहु-मकर, मंगल, केतु- कर्क, शनि- कन्या तथा चंद्रमा मिथुन राशि में.

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