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फ़िरदौस ख़ान
कहते हैं, बुरी घड़ी कहकर नहीं आती. बुरा वक़्त कभी भी आ जाता है. मौत या हादसों का कोई वक़्त मुक़र्रर नहीं होता. जब कोई हादसा होता है, जान या माल का नुक़सान होता है, तो किसी भी व्यक्ति को इसका सदमा लग सकता है. ऐसे में व्यक्ति के जिस्म में ताक़त नहीं रहती और शारीरिक क्रियाएं धीमी पड़ जाती हैं. दिमाग़ रक्त वाहिनियों की पेशियों पर नियंत्रण नहीं रख पाता, जिससे दिमाग़ और जिस्म का तालमेल गड़बड़ा जाता है. दिल की धड़कन भी धीमी हो जाती है. व्यक्ति क चक्कर आने लगते हैं, वह बेहोश हो जाता है, कई बार उसकी मौत भी हो जाती है. मौत कभी पूरा न होने वाला नुक़सान है. मौत के सदमे से उबरना आसान नहीं है. सदमे का ताल्लुक़ भावनाओं से है, संवेदनाओं से है. अगर कोई इन संवेदनाओं के साथ खिलवाड़ करे, तो उसे किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता. लेकिन सियासी हलक़े में मौत और सदमे पर भी सियासत की बिसात बिछा ली जाती है. फिर अपने फ़ायदे के लिए शह और मात का खेल खेला जाता है. इन दिनों तमिलनाडु में भी यही सब देखने को मिल रहा है.
तमिलनाडु में सत्तारूढ़ पार्टी अन्नाद्र्मुक दावा कर रही है कि जयललिता की मौत के सदमे से 470 लोगों की मौत हो चुकी है. पार्टी ने मृतकों के परिवार को तीन लाख रुपये की मदद देने का ऐलान किया है. पार्टी ने ऐसे लोगों की फ़ेहरिस्त जारी की है, जिनकी मौत सदमे की वजह से हुई है. पार्टी का यह भी कहना है कि जयललिता के निधन के बाद अब तक छह लोग ख़ुदकुशी की कोशिश कर चुके हैं. ऐसे चार लोगों का ब्यौरा भी जारी किया गया है. जयललिता की मौत की ख़बर सुनने पर ख़ुदकुशी की कोशिश करने वाले एक व्यक्ति को पार्टी ने 50 हज़ार रुपये देने की घोषणा की है. इतना ही नहीं जयललिता की मौत की ख़बर सुनकर अपनी उंगली काटने वाले व्यक्ति को भी 50 हज़ार रुपये की मदद देने का ऐलान किया जा चुका है.

इसमें कोई शक नहीं है कि ’अम्मा’ के नाम से प्रसिद्ध जयललिता तमिलनाडु की लोकप्रिय नेत्री थीं. उन्होंने राज्य की ग़रीब जनता के कल्याण के लिए कई योजनाएं शुरू की थीं. उन्होंने साल 2013 में चेन्नई में ‘अम्मा कैंटीन’ शुरू की, जहां बहुत कम दाम पर भोजन मुहैया कराया जाता है. अब पूरे राज्य में 300 से ज़्यादा ऐसी कैंटीन हैं, जिनमें एक रुपये में एक इडली और सांभर दिया जाता है, और पांच रुपये में चावल और सांभर परोसा जाता है. ग़रीब तबक़े के लोग इन कैंटीन में नाममात्र के दाम पर भरपेट भोजन करते और ’अम्मा’ के गुण गाते हैं. ये कैंटीन सरकारी अनुदान पर चलती हैं. इसके अलावा ग़रीबी रेखा के नीचे के परिवारों को हर महीने 25 किलो चावल, दालें, मसाले और खाने का अन्य सामान मुफ़्त दिया जाता है. सरकारी अस्पतालों में लोगों का मुफ़्त इलाज किया जाता है. उन्होंने पालना बेबी योजना, अम्मा मिनरल वॉटर, अम्मा सब्ज़ी की दुकान, अम्मा फ़ार्मेसी, बेबी केयर किट, अम्मा मोबाइल जैसी कई योजनाएं भी चलाई. इतना ही नहीं उन्होंने मुफ़्त में भी कई सुविधाएं लोगों को दीं, जिनमें ग़रीब औरतों को मिक्सर ग्राइंडर, लड़कियों को साइकिलें, छात्रों को स्कूल बैग, किताबें, यूनिफॉर्म और मुफ़्त में मास्टर हेल्थ चेकअप आदि शामिल हैं. क़ाबिले-ग़ौर बात यह भी है कि चुनाव के वक़्त लोगों को लुभाने के लिए उन्हें  रोज़मर्रा के काम आने वाली चीज़ें ’तोहफ़े’ में दी जाती हैं, जिनमें टेलीविज़न, एफ़एम रेडियो,  इडली-डोसा बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली पिसाई मशीन, साइकिल, लैपटॉप वग़ैरह शामिल हैं. अपने इन्हीं ग़रीब हितैषी कार्यों की वजह से जयललिता जनप्रिय हो गईं. उनकी लोकप्रिय का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बाक़ी राज्यों में भाजपा की लहर चल रही थी, उस वक़्त उनकी पार्टी अन्नाद्रमुक ने तमिलनाडु में 39 में 37 सीटों पर जीत का परचम लहराया था. वह अपने सियासी गुरु एमजी रामचंद्रन के बाद सत्ता में लगातार दूसरी बार आने वाली तमिलनाडु में पहली राजनीतिज्ञ थीं.

ग़ौरतलब है कि 68 वर्षीय जयललिता को 22 सितंबर को अस्पताल में दाख़िल कराया, तो बहुचर्चित सबरीमाला मंदिर ने उनके जल्द स्वस्थ होने की कामना के साथ तक़रीबन 75 हज़ार श्रद्धालुओं को मुफ़्त भोजन कराना शुरू कर दिया था. लोग उनके लिए दुआएं कर रहे थे. 5 दिसंबर को उनकी मौत के बाद राज्य में शोक की लहर दौड़ गई. जन सैलाब उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुआ. सरकार ने पांच दिन का शोक घोषित कर दिया.  जगह-जगह शोक सभाओं का आयोजन कर उनकी आत्मिक शांति के लिए प्रार्थनाएं होने लगीं. फिर ख़बरें आने लगीं कि जयललिता की मौत के सदमे में फ़लां-फ़लां व्यक्ति की मौत हो गई. अन्नाद्रमुक ने मृतकों के लिए सहायता राशि देने की घोषणा कर डाली. इस काम में राज्य सरकार भी पीछे नहीं रही.  इन मरने वाले लोगों की मौत सदमे से हुई है या नहीं ? ये बात अलग है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इस तरह सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ डालना सही है, क्या करदाताओं की मेहनत की कमाई, जिसका बड़ा हिस्सा करों के रूप में राज्य को मिलता है, उसका इस्तेमाल इन लोगों के परिजनों को मुआवज़ा देने में होना भी चाहिए था? जयललिता की लोकप्रियता के बाद भी इस सवाल का जवाब ’न’ ही है. तमिलनाडु सरकार को सरकारी ख़ज़ाने के पैसे का इस तरह से दुरुपयोग करने से बचना चाहिए था.

इससे बेहतर यह होता कि अन्नाद्रमुक जन कल्याण की कोई और योजना शुरू करती, जिससे ग़रीबों का भला होता ही, वह योजना जयललिता के प्रशंसकों-समर्थकों के मन में उनकी स्मृतियों को भी तरोताज़ा किए रहती. इसके साथ-साथ उन योजनाओं को जारी रखने का संकल्प भी लिया जाना चाहिए था, जो जयललिता ने अपने कार्यकाल में शुरू की थीं. अन्नाद्रमुक और पन्नीर सेल्वम की सरकार को समझना होगा कि हथकंडे अपनाकर कुछ वक़्त के लिए ही जनता का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा जा सकता है, पर इस तरह खींचा गया ध्यान स्थाई नहीं होता है. यह तो तभी होता है, जब जन कल्याण के कार्य एक संकल्प के तौर पर किए जाएं. जयललिता यही करती थीं, इसीलिए उन्हें ’अम्मा’ कहा जाता है, जबकि पन्नीर सेल्वम सरकारी ख़ज़ाने का दुरुपयोग ही कर रहे हैं. यह उन मौतों को गरिमा प्रदान करनी भी है, जो जयललिता के निधन के बाद सदमा लगने से हुई बताई जा रही हैं. इंसान का जीवन अनमोल होता है. अलबत्ता अल्पकाल में होने वाली मौतों को महिमा-मंडित करना भी प्रकृति और उसके नियमों के ख़िलाफ़ है.


मनोहर कुमार जोशी
राजस्थान में ऐसे बेरोजगार युवक जिनके पास कम से कम एक हैक्टेयर कृषि भूमि है, उनके लिए ग्वारपाठा (एलोवेरा) की खेती रोजगार का जरिया बन सकती है। शुष्क और उष्ण जलवायु में पैदा होने वाली ग्वारपाठा की खेती के लिए राजस्थान की जलवायु और मिट्टी सर्वाधिक उत्तम मानी जाती है। ग्वारपाठा मूलत: दो प्रकार का होता है, एक खारा ग्वारपाठा और दूसरा मीठा ग्वारपाठा। खारा ग्वारपाठा आयुर्वेदिक औषधियों एवं सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री तैयार करने के लिए काम में लिया जाता है, जबकि मीठा ग्वारपाठा का इस्तेमाल अचार और सब्जी बनाने के लिए होता है। 

कृषि विशेषज्ञों एवं जानकारों के मुताबिक राजस्थान में फिलहाल तीन हजार हैक्टेयर से अधिक भूभाग पर किसान ग्वारपाठे की खेती कर रहे हैं। एक हैक्टेयर में ग्वारपाठा के बीस हजार पौधे लगाये जा सकते हैं। इस पर वर्ष भर में 50 से 60 हजार रूपये का खर्चा आता है। पूरे साल में वर्षा के मौसम को छोड़ कर करीब 12 बार सिंचाई की जरूरत होती है। गर्मी के मौसम में महीने में एक अथवा दो बार सिंचाई करनी पड़ती है। ग्वारपाठे की अच्छी फसल के लिए 15 टन प्रति हैक्टेयर गोबर की खाद दी जा सकती है। एक साल बाद पत्तियों के रूप में उत्पादन शुरू हो जाता है। सिंचित क्षेत्र में 30 टन तथा असिंचित क्षेत्र में 20 टन प्रति हैक्टेयर सालाना ग्वारपाठे का उत्पादन होता है। 

एक किसान को ग्वारपाठा की खेती से लगभग 40 हजार रूपये प्रति हैक्टेयर लाभ हो जाता है। ग्वारपाठे की पत्तियों की तुड़ाई वर्ष में तीन से चार बार की जाती है। किसान को मण्डी अथवा बाजार में फसल ले जाने की जरूरत नहीं पड़ती है। ग्वारपाठा के उत्पाद बनाने वाली फर्म अथवा इकाईयों से सम्पर्क करने पर उनके प्रतिनिधि खुद खेत पर आकर कटी पत्तियां खरीद ले जाते हैं। खेत में एक बार इसे उगाने के बाद इस पौधे का विस्तार होता रहता है। 

मदर प्लांट्स (मातृ पौध) के पास डॉटर प्लांट्स (प्ररोह-छोटे पौधे) तैयार होते रहते हैं। किसान इन छोटे पौधों को बेच कर अतिरिक्त लाभ भी कमा सकते हैं। ग्वारपाठे के छोटे पौधों की पहली बार खेती करने वाले अथवा नर्सरी लगाने वाले खरीद कर ले जाते हैं। किसान को अपने खेत में ग्वारपाठे उगाने के लिए 

छोटे पौधों को खरीदते समय इस बात की सावधानी रखनी चाहिए की प्ररोह 9 से 12 इंच का हो, इससे छोटे पौधे सस्ते तो मिल जाते हैं, लेकिन इन पौधों के विकसित होने से पहले ही उनके नष्ट होने का खतरा रहता है। ग्वारपाठे के छोटे पौधे एक से डेढ़ रूपघ् में मिल जाते हैं। 

राजस्थान में ग्वारपाठा की खेती बीकानेर संभाग में सर्वाधिक होती है। इसके अलावा जोधपुर संभाग में भी कई गांवों में इसकी खेती की जा रही है। इस औषधीय पौधे की खेती के लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन प्रति हैक्टेयर 20 प्रतिशत का अनुदान 5 हैक्टेयर तक प्रदान करता है। उद्यान निदेशालय की एक रिपोर्ट के अनुसार एक हैक्टेयर पर ग्वारपाठा की खेती के लिए होने वाले 42500 रूपये के खर्च में से 8500 रूपये का अनुदान सरकार उपलब्ध कराती है। जोधपुर स्थिति केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान एकाजरी एवं जयपुर के समीप जोबनेर में कृषि अनुसंधान केन्द्र में ग्वारपाठे की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा जयपुर में कृषि पंत भवन में उद्यान निदेशालय से भी विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आयुर्वेद में घृतकुमारी और स्थानीय बोलचाल में ग्वारपाठा के रूप को जानने वाले इस प्राचीन पौधे की औषधीय उत्पादों में खास उपादेयता है, जबकि सौन्दर्य प्रसाधान की सामग्री में यह ग्वारपाठा के रूप में लोकप्रिय है। हर्बल उत्पादों की वस्तुओं में ग्वारपाठा सबसे पहले पाया जाता है।

जोधपुर संभाग के जैसलमेर जिले के पोकरण, राजमथाई, डाबला, बांधेवा आदि गांवों में ग्वारपाठे की खेती का विस्तार हो रहा है। यहां होने वाला ग्वारपाठा तीन रूपये प्रति किलोग्राम की दर से हरिद्वार भेजा जाता है। इसकी खेती करने वाले सागरमल, जोगराज एवं हाजी खां के अनुसार हरिद्वार स्थित आयुर्वेदिक औषधियां बनाने वाली एक कंपनी अपना वाहन लेकर यहां आती है तथा ग्वारपाठा खरीद कर ले जाती है। 

जिले में 200 बीघा से अधिक भूमि पर इसकी खेती की जा रही है। इसके अतिरिक्त नागौर, अजमेर, सीकर, झुंझुनू घ्घ्घ् चुरू सहित राज्य के विभिन्न जिलों में इसकी खेती के प्रति किसानों में जागृति आयी है तथा किसान ग्वारपाठा की खेती से जुड़ने लगे हैं। 

सीकर जिले के एक किसान को ग्वारपाठे का महत्व उस वक्त समझ में आयाए जब खेत-खलिहान में लगी आग से वहां बंधी भैंसे झुलस गई और उसके उपचार में ग्वारपाठा का गूदा रामबाण औषधि साबित हुआ। 

पाली जिले के निमाज गांव के प्रगतिशील किसान श्री मदनलाल देवड़ा जिन्होंने अपने खेत पर ग्वारपाठा और आंवला उगाकर इसका मूल्यसंवर्धन तथा प्रसंस्करण करना शुरू कर दिया है, वे बताते हैं कि मैंने अपने खेत में आंवला एवं ग्वारपाठा की खेती को चुनौती के तौर पर लिया। आज मेरे खेत में साढ़े तीन हैक्टेयर में ग्वारपाठा उगा हुआ है। शुरू में लागत ज्यादा आती है, इसलिए किसान कतराता है। वहीं दूसरी ओर इसकी प्रक्रिया का कार्य करोड़पतियों के हाथ में होने से किसानों को उनकी ओर देखना पड़ता है। वे कहते हैं कि मुझे आज भी याद है कि मैंने चुरू में आंवले का ज्यूस चार बोतल से शुरू किया था। बीच-बीच में ऐसा भी लगा कि क्या मैं अपने उत्पाद बाजार में चला पाऊंगा ? लेकिन उत्पाद की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया तथा हौसला नहीं छोड़ा। आज मुझे इस बात की खुशी है कि दक्षिण भारत के बंगलुरू और हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में मेरे द्वारा तैयार ग्वारपाठा एवं आंवला के रस ने दस्तक दे दी है और दो से ढाई लाख रूपये का रस हर माह वहां भेज रहा हूं। पाली जिले में इस समय 27 हैक्टेयर पर इसकी खेती की जा रही है। नागौर में भी कुछ काश्तकार इसकी खेती तथा फसलोत्तर कार्य में लगे हुये हैं। 

इसकी खेती करने वाले काश्तकारों के अनुसार ग्वारपाठा का पौधा ऐसा पौधा है, जो थोड़ी .सी मेहनत के बाद बंजर भूमि में भी उग जाता है। इसे पशु, पक्षी तथा जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। राजस्थान के मरूस्थलीय इलाके में रासायनिक खादों का कम उपयोग होने से जैविक उत्पादन ज्यादा प्राप्त हो सकता है। 

एक कृषि अधिकारी के मुताबिक राजस्थान में ग्वारपाठा के प्रसंस्‍करण कार्य में छोटी-बड़ी 20 से 30 इकाईयां लगी हुई हैं। ये इकाईयां बड़े उद्योगों की मांग के अनुरूप माल की आपूर्ति करती हैं। आने वाले समय में राजस्थान में व्यापक स्तर पर इसकी खेती की जा सकती है। 


फ़िरदौस ख़ान
उत्तराखंड में सिर्फ़ कांग्रेस की ही जीत नहीं हुई है, बल्कि यहां लोकतंत्र की जीत हुई है, जनता की भावनाओं की जीत हुई है. देवभूमि की जनता ने लोकतांत्रिक तरीक़े से कांग्रेस को चुना था, उसे सत्ता सौंपी थी. लेकिन विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी ने साज़िश करके राज्य में राष्ट्रपति शासन लगवा दिया. कांग्रेस ने हार नहीं मानी और अपना संघर्ष जारी रखा. आख़िरकार जीत सच की ही हुई. राज्य में कांग्रेस फिर से सत्ता में आ गई है. इससे जहां कांग्रेस ख़ेमे में जश्न का माहौल है, वहीं भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है और पार्टी की ख़ासी किरकिरी भी हुई है.

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर कल राज्य विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराया गया था, जिससे कांग्रेस सरकार की बहाली तय मानी जा रही थी, सिर्फ़ औपचारिक ऐलान बाक़ी था. सर्वोच्च न्यायालय ने आज शक्ति परीक्षण के नतीजे का ऐलान कर दिया. अदालत ने बताया है कि हरीश रावत के पक्ष में 33 विधायकों ने मतदान किया, जबकि भाजपा के पक्ष में 28 विधायकों ने अपना मत दिया. क़ाबिले-ग़ौर है कि शक्ति परीक्षण के दौरान अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल को छोड़कर सभी 61 विधायकों ने हाथ उठाकर अपने वोट दर्ज कराए. हालांकि मतदान के बाद बाहर आकर कांग्रेस और भाजपा विधायकों ने साफ़ इशारा कर दिया था कि कांग्रेस के पक्ष में 33 और भाजपा के पक्ष में 28 मत पड़े हैं. कांग्रेस और भाजपा दोनों के विधायकों ने कहा कि दोनों दलों के एक-एक विधायक ने क्रॊस मतदान किया. घनसाली से भाजपा विधायक भीम लाल आर्य ने रावत के समर्थन में मतदान किया, जबकि सोमेश्वर से कांग्रेस विधायक ने विश्वास मत के विरोध में अपना वोट दिया था.

अदालत में केंद्र सरकार ने यू टर्न लेते हुए कहा कि राज्य से राष्ट्रपति शासन हटाया जाएगा. इसी के साथ मामले ख़त्म हो गया है, लेकिन अदालत ने कहा है कि मामले की सुनवाई आगे भी जारी रहेगी. अदालत ने केंद्र सरकार को राष्ट्रपति शासन हटाने की मंज़ूरी दे दी है. अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति शासन हटने के बाद हरीश रावत बतौर मुख्यमंत्री अपना दायित्व संभाल सकते हैं. साथ ही राष्ट्रपति शासन हटाने के आदेश की प्रति अदालत में रखने का निर्देश दिया. इसके फ़ौरन बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक हुई, जिसमें उत्तराखंड से राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफ़ारिश करने का फ़ैसला लिया गया.
 ग़ौरतलब है कि राज्य में 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन लगाया गया था, जिसे पहले नैनीताल उच्च न्यायालय की एकल पीठ और फिर दो न्यायाधीशों की पीठ ने हटाने और हरीश रावत को बहुमत साबित करने का निर्देश दिया था. इसे केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी. सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले का हल निकालने के लिए विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराने का निर्देश दिया था. इस शक्ति परीक्षण में बहुजन समाज पार्टी और पीडीएफ़ ने हरीश रावत का साथ दिया.
हरीश रावत का कहना है कि वह सारी बातें भूलकर नई शुरुआत करेंगे. उन्होंने शक्ति परीक्षण में साथ देने के लिए बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मुख्यमंत्री का भी आभार जताया है.

राज्य में कांग्रेस की जीत पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए इसे लोकतंत्र की बताया है. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा राज्य की निर्वाचित सरकार को गिराने की हर मुमकिन कोशिश के बाद उत्तराखंड में लोकतंत्र की जीत हुई है. उम्मीद है कि इस नतीजे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पार्ती की हार से सबक़ मिल गया लेंगे. उन्होंने कहा कि देश की जनता हमारे पुरोधाओं द्वारा निर्मित लोकतंत्र नामक संस्था का क़त्ल बर्दाश्‍त नहीं करेगी. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी इसे उत्तराखंड में लोकतंत्र की जीत क़रार दिया है. 


अहमदाबाद (गुजरात). गुजरात की जेलों में 240 मुस्लिम बंदी हिरासत में हैं. इसके बाद 846 दोषी और 1724 अंडरट्रायल हैं. यह पूरे देश के मुस्लिम बंदियों की एक तिहाई संख्या है.
गृह मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों से यह ख़ुलासा हुआ है. इन आकंड़ों के अनुसार भारत में 82190 मुसलमान जेल और पुलिस हिरासत में हैं. इनमें 21,550 दोषी, 59550 अंडरट्रायल और 658 लॉक अप में हैं. गुजरात में 58.6 लाख मुस्लिम हैं, जो कि वहां की आबादी का 9.7 फ़ीसद है. लेकिन मुस्लिम बंदियों की बात करें, तो यह देश का 36.5 प्रतिशत है. गुजरात के बाद दूसरा नंबर तमिलनाडु का है. यहां पर 220 मुस्लिम बंदी है. उत्‍तर प्रदेश में केवल 45 बंदी हैं, लेकिन यहां पर दोषियों की तादाद 5040 और 17858 अंडरट्रायल हैं. अहम बात है कि आतंकवाद से जूझ रहे जम्‍मू कश्‍मीर में भी केवल 35 बंदी हैं. यहां पर 153 दोषी क़रार और 1125 अंडरट्रायल मुस्लिम हैं.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि गुजरात में मुसलमानों को निशाना बनाकर जेल में डाला जा रहा है. आतंकवाद रोधी क़ानूनों का उनके ख़िलाफ़ इस्‍तेमाल किया जा रहा है. हालांकि सरकार और पुलिस ने इससे इनकार किया है. सरकार का कहना है कि किसी व्‍यक्ति को निशाना नहीं बनाया जा रहा.

सरफ़राज़ ख़ान
अरावली की मनोरम पर्वत मालाओं के अंचल में स्थित सोहना अपने गर्म पानी के चश्मों के लिए प्राचीनकाल से ही प्रसिध्द है. दिल्ली से करीब 50 किलोमीटर दिल्ली-अलवर मार्ग पर हरियाणा में बसा यह नगर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर होने के कारण तीर्थ यात्रियों व पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. दिल्ली, जयपुर, अलवर, पलवल व गुड़गांव से आने वाली सड़कों का मुख्य केंद्र होने के कारण यहां सालभर श्रध्दालुओं का जमघट लगा रहता है.

किवदंती है कि सोहना को महर्षि सोनक ने बनाया था.  इसलिए उन्हीं के नाम पर स्थल का नाम सोहना पड़ा. कुछ विद्वानों का मानना है कि प्राचीनकाल में यहां की पहाड़ियों से सोना मिलता था. इस वजह से इस स्थल को सुवर्ण कहा जाता था, जो बाद में सोहना के नाम से जाना जाने लगा. वैसे बरसात के दिनों में पहाड़ी नालों की रेत में अकसर सोने के कण दिखाई देते हैं. इस सोने को लेकर एक और किस्स मशहूर है जिसके मुताबिक वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में आख़िरी मुगल सम्राट बहादुरशाह ज़फ़र के परिजनों को दिल्ली छोड़कर जाना पड़ा. अंग्रेज़ फ़ौज से बचने के लिए उन्होंने सोहना इलाके के गांव में डेरा डाला और अपने ख़ज़ाने को पहाड़ियों की किसी सुरक्षित गुफ़ा में दबा दिया. बाद में अंग्रेजी सेना ने उनकी हत्या कर दी.

इस घटना के करीब चार दषक बाद वर्ष 1895 में के.एम. पॉप नामक अंग्रेज कर्नल ने उस खजाने की तलाश में लंबे समय तक पहाड़ियों की ख़ाक छानी. मगर जब उसे कोई कामयाबी नहीं मिली, तो उसने इलाक़े के कुछ लोगों को साथ लेकर नए सिरे से ख़ज़ाने की खोज शुरू की. उन्हें ख़ज़ाने वाली गुफ़ा भी मिल गई, लेकिन भूत-प्रेत के ख़ौफ़ से ग्रामीणों ने गुफा में जाने से इंकार कर दिया. इसके बावजूद कर्नल ने हार नहीं मानी और अकेले ही ख़ज़ाने तक जाने का फ़ैसला किया. गुफ़ा के अंदर जाने पर उन्हें अस्थि पंजर दिखाई दिए, लेकिन इसके बाद भी वह आगे बढ़ते रहे. अंधेरी गुफा की जहरीली गैस से उनका दम घुटने लगा और वह बाहर की ओर दौड़ पड़े. इस गैस का उनकी सेहत पर गहरा असर पड़ा. स्वास्थ्य लाभ होने पर वे दोबारा गुफ़ा में गए, लेकिन तब तक सारा ख़ज़ाना चोरी हो चुका था. प्राचीनकाल में यहां ठंडे पानी के चश्मे भी थे, जो प्राकृतिक आपदाओं या परिवर्तन की वजह से धरती के नीचे समा गए. इनके बारे में ख़ास बात यह है कि इन चश्मों का संबंध जितना प्राचीन कथा से जुड़ा है, उतना ही इनकी खोज का विषय भी विवादास्पद रहा है. कुछ लोगों के मुताबिक़ ये चश्मे करीब तीन सौ साल पहले खोजे गए, जबकि बुजुर्गों का कहना है कि इन पर्वत मालाओं के नीचे से होकर गुजरने वाले व्यापारी और तीर्थ यात्रियों ने इन चश्मों की खोज की थी.

अरावली पर्वत की शाखाएं यहां से अजमेर तक फैली हैं. इन पहाड़ियों में दस-दस मील की दूरी तक कोई न कोई कुंड या झरना मौजूद है. इन झरनों व चश्मों की आखिरी कड़ी अजमेर में 'पुष्कर' सरोवर के नाम से विख्यात है. इन चश्मों की खोज के बारे में कई दंत कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि एक बार चतुर्भुज नामक एक बंजारा ऊंटों, भेड़ों और खच्चरों पर नमक डालकर सोहना इलाक़े से गुज़र रहा था. गर्मी का मौसम था. इसलिए प्यास से व्याकुल होने पर उसने अपने कुत्ते को पानी की तलाश के लिए भेजा. थोड़ी देर बाद कुत्ता वापस आया. उसके पैर पानी से भीगे हुए थे. यह देखकर बंजारा बहुत खुश हुआ और कुत्ते के साथ पानी के चश्मे की ओर गया. उसने देखा कि निर्जन स्थलों पर शीतल जल का चश्मा है. उसने सोचा कि दैवीय शक्ति के कारण ही वीरान चट्टानों में पानी का चश्मा है. इसलिए उसने देवी से अपने कारोबार में मुनाफ़ा होने की मन्नत मांगी और उसे बहुत लाभ हुआ.

लौटते समय उसने अपने गुरु के नाम पर साखिम जाति नाम के गुम्बद और कुंडों का निर्माण करवाया। बाद में लक्खी नामक बंजारे ने इन कुंडों का जीर्णोद्वार करवाया. साखिम जाति के गुम्बद पर लगा सोने का कलम क़रीब आठ दशक पुराना है. इसे केशावानंद जी ने इलाके के लोगों से एकत्रित घन से चढ़वाया था. आईने-अकबारी में भी यहां के गर्म पानी के चश्मों का ज़िक्र आता है. किवदंती है कि योग दर्शन के रचयिता महार्षि पतंजलि का इस स्थल पर अनेक बार आगमन हुआ. संत महात्मा ऐसे ही स्थलों के आसपास अपने आश्रम बनाते थे. आधुनिक समय (1872 ई.) में अंग्रेजों ने इन चश्मों का पता लगाया था. ये चश्मे शहर के मध्य स्थित एक सीधी चट्टान के तल में स्थित हैं. इन चश्मों की तीर्थ के रूप में माना जाता है.

संदीप माथुर
मथुरा (उत्तर प्रदेश). क्या आपने कभी भूतों का मंदिर देखा या सुना है? अगर नहीं तो आज हम आपको बताएंगे कि भूतों ने भी एक मंदिर बनाया है.
आज से 2100 वर्ष पहले मथुरा से 10 -12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वृंदावन में भूतों ने एक मंदिर बनाया था, जिसे गोविन्द देव जी का मंदिर कहा जाता है. यहां पर रहने वालों का कहना है कि इस मंदिर को भूतों ने बनाया है. तभी इसे तों के मंदिर के नाम से जाना जाता है. जब हमने इस मंदिर के पुजारी से बात की तो उन्होंने बताया कि यह मंदिर गोविन्द देव जी का है, लेकिन यह कहा जाता है कि इस मंदिर को आधी रात के समय भूत बना रहे थे. तभी सुबह के समय किसी महिला ने चक्की चला दी और उसकी आवाज़ सुनकर भूत मंदिर को अधूरा बना हुआ छोड़कर भाग गए. तब से ही ये मंदिर अधूरा ही है. बताया जाता है कि इस मंदिर में पहले गोविन्द देव जी की असली प्रतिमा थी, लेकिन अब वह असली प्रतिमा भी नहीं है. इसका कारण यह है कि जब औरंगज़ेब का शासन आया तो उस समय औरंगज़ेब हिन्दुओं के मंदिरों को ख़त्म करवा रहा था. उस समय औरंगज़ेब ने इस मंदिर को तुड़वाना शुरू किया. इस मंदिर के चार मंज़िल को वह तुड़वा चुका था और मंदिर की नक्काशियों में जड़े हुए जवाहरातों को वह निकालकर ले गया था. मंदिर की असली प्रतिमा को मंदिर के पुजारी औरंगज़ेब के डर के कारण जयपुर लेकर चले गए थे. फिर जयपुर के राजा ने जयपुर में ही गोविन्द देव का मंदिर बनवा कर उस असली प्रतिमा को स्थापित करवा दिया जो आज भी जयपुर के उस मंदिर में मौजूद है.


तिरुवनंतपुरम (केरल). मलप्पुरम ज़िले के शिक्षक अब्दुल मलिक स्कूल जाने के लिए रोज़ाना 100 मीटर नदी तैरकर पार करते हैं. ख़ास बात यह है कि 19 साल में उन्होंने एक बार भी ड्यूटी मिस नहीं की.
क़रीब 40 वर्षीय अब्दुल पडिंजत्तेमुरी में प्राइमरी टीचर हैं. वे बताते हैं, "नौकरी लगने के बाद मैं दो-तीन साल तक सड़क के रास्ते स्कूल गया. लेकिन इसमें 24 किलोमीटर ज्यादा दूरी तय करनी पड़ती थी. तीन बसें बदलनी पड़तीं और घर से भी जल्दी निकलना होता था. एक दिन सहकर्मी बापुत्ती की सलाह पर मैंने तैरकर स्कूल जाना शुरू किया. परिवार वाले कुछ डरे, लेकिन मुझे खुद पर भरोसा था. मैं कपड़े, टॉवेल और किताबें पॉलिथिन में बांधकर अपने साथ ले जाता हूं. नदी के उस पार पहुंचकर कपड़े बदल लेता हूं.'
अब्दुल को नदी पार करते समय स्कूल के छात्र उत्सुकता से देखते थे. ऐसे में उन्होंने उनकी उत्सुकता को अभ्यास में बदलने का फैसला किया. पहले एक-दो बच्चों ने तैरना शुरू किया, आज अब्दुल कई बच्चों को तैरने की ट्रेनिंग दे रहे हैं. छात्रों का कहना है कि अब्दुल सर ने उन्हें सेहतमंद रहना भी सिखाया है. नदी से वर्षों पुराना नाता रहा तो उन्होंने इसे साफ़ रखने का भी फ़ैसला किया. अब्दुल अपने छात्रों के साथ स्कूल आते-जाते नदी से कचरा-पॉलिथिन भी साफ़ करते हैं. लोगों को भी ऐसा करने का संदेश देते हैं.
अब्दुल ने राजनेताओं का ध्यान भी अपनी ओर खींचा. उन्हें सम्मानित भी किया, लेकिन वे इस नदी पर पुल बना पाने में अपनी मजबूरी बताते हैं. स्थानीय पंचायत का कहना है कि इस नदी पर पहले ही तीन पुल हैं. जिस रास्ते से अब्दुल जाते हैं, वहां से ज़्यादा आवाजाही नहीं है. ऐसे में नया पुल बनाना फिलहाल मुमकिन नहीं है.
ग़ौरतलब है कि अब्दुल साल 2029 में नौकरी से रिटायर होंगे. उनका अनुमान है कि तब तक वे क़रीब 1000 घंटे पानी में बिता चुके होंगे. 35 साल की नौकरी में क़रीब 700 किलोमीटर की दूरी तैर कर पार कर चुके होंगे, जो इंग्लैंड और फ्रांस के बीच इंग्लिश चैन की दूरी के बराबर होगा. तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता उन्हें सम्मानित कर चुकी हैं.


फ़िरदौस ख़ान
समाज में वहशी दरिन्दे खुलेआम घूम रहे हैं. कब हादसा हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता. पहले 16  दिसंबर 2002 को निर्भया के साथ दरिन्दगी हुई. देश इस दिल दहला देने वाले हादसे से उबरा भी नहीं था कि  एक फ़रवरी, 2015 को हरियाणा के रोहतक में रह रही नेपाली महिला के साथ दरिन्दगी की गई. अदालत ने दरिन्दों को मौत की सज़ा सुनाकर समाज को एक संदेश दिया कि किसी भी दरिन्दो को बख़्शा नहीं जाएगा.

हरियाणा की रोहतक ज़िला सत्र अदालत ने 21 दिसंबर को मानसिक अक्षम नेपाली महिला से बलात्कार और बेहरहमी से उसका क़त्ल करने के सात दोषियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत फांसी की सज़ा सुनाई. इसके अलावा सामूहिक दुष्कर्म मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 डी व साथ में 120 बी के तहत उम्रक़ैद और 50 हज़ार रुपये जुर्माना, धारा 366 व साथ में 120 बी के तहत दस साल की सज़ा व 20 हज़ार रुपये जुर्माना किया गया है. धारा 201 के तहत सभी दोषियों को सात साल की सज़ा और 20 हज़ार रुपये जुर्माना किया गया है, जबकि धारा 377 के तहत राजेश उर्फ़ घोचड़ू को उम्रक़ैद व 50 हज़ार रुपये जुर्माने की सज़ा सुनाई गई है.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सीमा सिंघल ने इस मामले में फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि सभ्यता जितनी आगे बढ़ी है, दिमाग़ी रूप से पीछे गई है. इस फ़ैसले के ज़रिये समाज को संदेश देना है कि औरत कमज़ोर नहीं है, औरत को अपनी पहचान व निजता पर गर्व है. शर्मिंदगी औरतों के लिए नहीं है, बल्कि उन मर्दों के लिए है, जिन्होंने यह जुर्म किया है. इस तरह के जुर्म शरीर पर नहीं, आत्मा पर चोट पहुंचाते हैं. यह फ़ैसला आत्मा के घाव मिटाने की कोशिश है. इसके बाद सातों दोषियों को फांसी की सज़ा सुनाते हुए जज ने क़लम तोड़ दी.

ग़ौरतलब है कि रोहतक ज़िले के गड्डी खेरा गांव में हुए इस ख़ौफ़नाक हादसे में दोषियों ने पीड़िता के साथ सामूहिक बलात्कार करने के बाद पत्थरों से पीट पीटकर उसका क़त्ल कर दिया था. इस मामले में कुल नौ आरोपियों के नाम सामने आए. इनमें से 22 वर्षीय सोमबीर आठवां आरोपी था, जो फ़रार था. उसने कुछ महीने पहले दिल्ली के बवाना इलाक़े में ख़ुदकशी कर ली थी. एक नाबालिग़ होने की वजह से उसका मामला किशोर अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया. नेपाली मूल के इस नाबालिग़ को हिसार के बाल सुधार गृह में रखा गया है.
इस मामले में अभियुक्तों के ख़िलाफ़ सात सितंबर को फ़ास्ट ट्रैक अदालत में मामले तय किया गया था. इसमें 57 प्रत्यक्षर्दिशयों की गवाही हुई. 18 दिसंबर को इन सात लोगों को दोषी पाया गया. पीड़िता का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों का कहना था कि पीड़िता के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया है. सामूहिक बलात्कार के बाद और मौत से पहले उसे शारीरिक यातनाएं दी गई थीं. इसके बाद ऑटोप्सी रिपोर्ट से भी ज़ाहिर हुआ था कि पीड़िता के सिर, छाती, जांघ और यौन अंगों पर गहरे ज़ख़्म के कई निशान थे.

अभियुक्तों के वकील डॉ. दीपक भारद्वाज का कहना है कि वह इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करेंगे. वहीं, पीड़िता की बहन जानकी ने कहा कि अब गुनाहगार बेशक हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाएं, वह अपनी बहन के लिए इंसाफ़ की लड़ाई लड़ती रहेंगी. उन्होंने यह भी कहा कि वह अपनी बहन की पहचान नहीं छिपाएंगी और माननीय न्यायाधीश को भी यही कहा था कि उनकी बहन गुमनामी की मौत नहीं मरेगी.  उन्मृहोंने कहा कि उन्हें तब ही संतुष्टि मिलेगी, जब दोषियों को फांसी होगी.


ग़ौरतलब है कि 28 वर्षीय पीड़िता मूल रूप से नेपाल की थी और रोहतक में अपनी बहन के परिवार के साथ रहती थी. वह एक फ़रवरी, 2015 को अपने घर से लापता हो गई और उसका क्षत-विक्षत शव चार फ़रवरी को बहू अकबर गांव में मिला था. रोहतक के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक शशांक आनंद ने इस मामले के सभी अभियुक्तों को 9 फ़रवरी को हिरासत में ले लिया. इसमें एक नेपाली युवक संतोष के अलावा राजेश उर्फ़ गुचाडू, सुनील उर्फ़ शीला, सरवर उर्फ़ बिल्लू, मनबरी, सुनील उर्फ़ माधा, पवन और प्रमोद उर्फ़ पदम शामिल थे.

ग़ौरतलब है कि इस मामले में अदालत ने बेहद संजीदगी से काम करते हुए तेज़ी से कार्रवाई की. न्यायाधीश ने मामले को फास्ट ट्रायल पर रखते हुए 15 अक्टूबर के बाद लगातार गवाही सुनी. महज़ दो माह तीन दिन में 57 गवाहियां पूरी हो गईं. देर शाम तक काग़ज़ी काम निपटाया गया. आरोपियों को दोषी ठहराए जाने के बाद न्यायाधीश और उनका स्टाफ़ शनिवार और रविवार दोनों दिन काम में जुटा रहा.

आरोपियों के गिरफ़्तार होने के बाद ज़िला बार एसोसिएशन ने फ़ैसला लिया था कि कोई भी वकील आरोपियों की तरफ़ से पैरवी नहीं करेगा. हालांकि, न्यायिक प्रक्रिया के तहत डॉ. दीपक भारद्वाज को आरोपियों की तरफ़ से वकील नामित किया गया. इस मामले में पीड़िता की ओर से तीन वकीलों ने पैरवी की. नेपाली युवती के हत्यारों की गिरफ़्तारी की मांग को लेकर नेपाली एकता मंच, विभिन्न सामाजिक संगठनों, शिक्षकों, विद्यार्थियों ने सड़क पर उतरकर दोषियों को गिरफ़्तार करने और उन्हें सज़ा देने की मांग की थी.

अब देखना ये है कि अपील के बाद ऊपरी अदालतें क्या फ़ैसला सुनाती हैं. अगर उन अदालतों ने भी इन दरिन्दों की फांसी की सज़ा को बरक़रार रखा, तो इससे जहां पीड़िता इंसाफ़ मिलेगा वहीं दरिन्दों को को भी उनके किए की सज़ा मिल जाएगी. इससे समाज में ये संदेश जाएगा कि कोई भी अपराधी अपराध करके बच नहीं सकता है.




भँवर मेघवंशी
राजस्थान के दौसा में पाकिस्तानी झण्डा फहराये जाने तथा टौंक के मालपुरा में आई एस आई एस के पक्ष में नारे लगाये जाने और जयपुर में आतंकी नेटवर्क खड़ा करने में जुटे मोहम्मद सिराजुद्दीन को गिरफ्तार किये जाने के बाद यह चर्चा बहुत आम हो गई है कि राजस्थान  प्रदेश आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करने की सबसे सुरक्षित जगह बन गया है !
उत्तरप्रदेश के एक स्वयंभू हिन्दू महासभाई कमलेश तिवाड़ी द्वारा हजरत मोहम्मद को अपमानित करने वाली टिप्पणी करने के विरोध में हुये देशव्यापी प्रदर्शन राजस्थान के भी विभिन्न शहरों में आयोजित किये गये.साम्प्रदायिक रूप से अतिसंवेदनशील मालपुरा कस्बे में भी मुस्लिम युवाओं ने अपने बुजुर्गों की मनाही के बावजूद एक प्रतिरोध जलसा किया.हालांकि शहर काजी और कौम के बुजुर्गों ने बिना मशवरे के कोई भी रैली निकालने से युवाओं को रोकने की भरपूर असफल कोशिस की.जैसा कि मालपुरा के निवासी वयोवृद्ध इकबाल दादा बताते है कि -' हमने उन्हें मना कर दिया था और शहर काजी ने भी इंकार कर दिया था ,मगर रसूल की शान के खिलाफ की गई अत्यंत गंदी टिप्पणी से युवा इतने अधिक आक्रोशित थे कि वे काजी तक को हटाने की बात करने लगे थे '
अंतत: मालपुरा के युवाओं की अगुवाई में 11दिसम्बर को एक रैली जामा मस्जिद से शुरू हो कर कोर्ट होते हुये तहसीलदार को ज्ञापन देने पहुंची .शांतिपूर्ण तरीके से ज्ञापन दे दिया गया मगर दूसरे दिन सोशल मीडिया में वायरल हुये एक वीडियो के मुताबिक रैली से लौटते हुये मुस्लिम नवयुवकों ने 'आर एस एस- मुर्दाबाद' तथा 'आई एस आई एस- जिन्दाबाद' के नारे लगाये.
जब मुस्लिम समाज के मौतबीर लोगों को पुलिस के समक्ष यह वीडियो दिखाया गया तो उन्हें पहले तो यकीन ही नहीं हुआ ,फिर उन्होंने अपने बच्चों की इस तरह की हरकत के लिये तुरंत माफी मांग ली और मामले को तूल नहीं देने का आग्रह किया,ताकि सौहार्द बरकरार रहे, मगर मालपुरा के हिन्दुवादी संगठन इस  मांग पर अड़ गये कि दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उनको तुरंत गिरफ्तार किया जाये.सूबे में सत्तारूढ़ चारधारा के राजनैतिक दबाव के चलते किसी व्यक्ति विशेष द्वारा बनाये गये विडियो को आधार बना कर मुकदमा दर्ज कर लिया गया तथा सलीमुद्दीन रंगरेज ,फिरोज पटवा ,वसीम ,शाहिद ,शाकिर ,अमान तथा वसीम सलीम सहित 7 लोगो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.
गिरफ्तार किये गये 60 वर्षीय राशन डीलर सलीमुद्दीन के बेटे नईम अख्तर का कहना है कि-' मेरे वालिद एक जमीन के सौदे के सिलसिले में कोर्ट गये थे ,वे रैसी मैं शरीक नहीं थे  ,मगर पुलिस कहती है कि उनका चेहरा वीडियो में दिख रहा है जहां नारे लगाये जा रहे थे ,इसलिये उन्हें गिरफ्तार किया गया है'
मालपुरा के मुस्लिम समुदाय का आरोप है कि पुलिस जानबूझकर बेगुनाहों को पकड़ रही है.इतना ही नहीं बल्कि धरपकड़ अभियान के दौरान सादात मौहल्ले में पुलिस द्वारा मुस्लिम औरतों के साथ निर्मम मारपीट और बदसलूकी भी की गई.
पुलिस दमन की शिकार 50 वर्षीय बिस्मिल्ला कहती है कि हम बहुत सारी महिलायें कुरान पढ़कर लौट रही थी ,तब घरों में घुसते हुये मर्द पुलिसकर्मियों ने हमें मारा . वह चल फिरने में असहाय महसूस कर रही है.सना  ,जमीला ,फहमीदा ,नसीम आदि महिलाओं पर भी पुलिस ने लाठियां भांजी ,किसी को चोटी पकड़ कर घसीटा तो किसी को पैरों और जंघाओं पर मारा एवं भद्दी गालियां दे कर अपमानित किया.पुलिस तीन औरतों फरजाना ,साजिदा और आरिफा को पुलिस पर पथराव करने  और राजकार्य में बाधा उत्पन्न करने के जुर्म में गिरफ्तार कर ले गई.जहां से फरजाना को शांतिभंग के आरोप में पाबंद कर देर रात छोड़ दिया गया ,वहीं आरिफा और साजिदा को जेल भेज दिया गया .
उल्लेखनीय है कि मालपुरा में आतंकवादी संगठनों के पक्ष में कथित नारे लगाने के वीडियो को वायरल किये जाने के बाद राज्य भर में इसकी प्रतिक्रिया हुई.हिन्दुत्ववादी संगठनों ने कुछ जगहों पर इसके विरूद्ध में ज्ञापन भी दिये और देशविरोधी तत्वों पर अंकुश लगाने की मांग की.जो विडियो लोगो को उपलब्ध है उसे देखने पर ऐसा लगता है कि वापस लौटती रैली में नारे लगाते एक युवक समूह पर ये नारे सुपर इम्पोज किये गये है .क्योंकि नारों की घ्वनि और रैली में चल रहे लोगो के मध्य कोई तारतम्य ही नहीं दिखाई पड़ता है .जिस जगह का यह विडियो है ,वहां के दुकानदारों का जवाब भी स्पष्ट नहीं है ,वे यह तो कहते है कि मालपुरा में पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे आम बात है ,मगर ये नारे कब और कहां लगते है तथा उस दिन क्या उन्होंने आई एस आई एस के पक्ष में नारे सुने थे ? इसका जवाब वे नहीं देते ,इतना भर कहते है की शायद आगे जा कर लगाये हो या कोर्ट में लगा कर आये हो.
विचार योग्य बात यह है कि ज्ञापन के दिन ना किसी समाचार पत्र ,ना  किसी टीवी चैनल और ना ही गुप्तटर एजेंसियों और ना ही पुलिस या प्रशासन को ये नारे सुनाई पड़े .लेकिन अगले दिन अचानक एक वीडियो जिसकी प्रमाणिकता ही संदिग्ध है ,उसे आधार बना कर पुलिस मालपुरा के मुस्लिम समाज को देशप्रेम की तुला पर तोलने लगती है तथा उनमें देशभक्ति की मात्रा कम पाती है और फिर गिरफ्तारियों के नाम पर दमन और दशहत का जो दौर चलता है ,वह दिन बदिन बढ़ते ही जाता है.हालात इतने भयावह हो जाते है कि लोग अपने आशियानों पर ताले लगा कर दर ब दर भागने को मजबूर कर दिये जाते है.
मालपुरा का घटनाक्रम चर्चा में ही था कि एक बड़े समाचार पत्र में दौसा के हलवाई मौहल्ले के निवासी 'खलील के घर की छत पर पाकिस्तानी झण्डा' फहराये जाने की सनसनीखेज खबर साया हो जाती है .खलील को तो प्रथम दृष्टया ही देशद्रोही घोषित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई ,मगर दौसा के मुस्लिम समाज ने पूरी निर्भिकता से इस शरारत का मुंह तोड़ जवाब दिया और पुलिस तथा प्रशासन को बुलाकर स्पष्ट किया कि यह चांद तारा युक्त हरा झण्डा इस्लाम का है ,ना कि पाकिस्तान का ! पुलिस अधीक्षक गौरव यादव को इस उन्माद फैलाने वाली हरकत करने की घटना पर स्पष्टीकरण देना पड़ा तथा उन्होनें माना कि यह गंभीर चूक हुई है ,एक धार्मिक झण्डे को दुश्मन देश का ध्वज बताना शरारत है.मुस्लिम समुदाय की मांग पर चार मीडियाकर्मियों के विरूद्ध मुकदमा दर्ज किया गया और खबर लिखने वाले पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया गया.खबर प्रकाशित करने वाले मीडिया समूह ने इसे पुलिस की नाकामी करार देते हुये स्पष्ट किया कि उनकी खबर का आधार पुलिस द्वारा दी गई सूचना ही थी ,पुलिस ने अपनी असफलता छिपाने की गरज से मीडिया के लोगों को बलि का बकरा बना दिया है.
जैसा कि इन दिनों ईद मिलादुन्नबी की तैयारियों के चलते घरों पर चांद तारे वाला हरा झण्डा लगभग हर जगह लगा हुआ दिखाई पड़ जाता है ,उसे पाकिस्तानी झण्डे के साथ घालमेल करके मुसलमानों के खिलाफ दुष्प्रचार का अभियान चलाया जा रहा है .
भीलवाड़ा में पिछले दिनों एक मुस्लिम तंजीम के जलसे के बाद ऐसी ही अफवाह उड़ाते एक शख्स को मैने जब चुनौती दी कि वह साबित करे कि जिला कलक्ट्रेट पर प्रदर्शन में पाकिस्तानी झण्डा लहराया गया है तो वह माफी मांगने लगा.इसी तरह फलौदी में पाक झण्डे फहराने सम्बंधी वीडियो होने का दावा कर रहे एक व्यक्ति से विडियो मांगा गया तो उसने ऐसा कोई वीडियो होने से ही इंकार कर दिया.तब ये कौन लोग है जो संगठित रूप से ' पाकिस्तानी झण्डे ' के होने का गलत प्रचार कर रहे है.यह निश्चित रूप से वही अफवाह गिरोह है जो हर बात को उन्माद फैलाने और दंगा कराने में इस्तेमाल करने में महारत हासिल कर चुका है.
इन कथित राष्ट्रप्रेमियों को मीडिया की बेसिर पैर की खबरें खाद पानी मुहैया करवाती रहती है.भारत का कारपोरेट नियंत्रित  जातिवादी मीडिया लव जिहाद ,इस्लामी आतंतवाद ,गौ तस्करी ,पाकिस्तानी झण्डा ,सैन्य जासूसी और आतंकी नेटवर्क के जुमलों के आधार पर चटपटी खबरें परोस कर मुस्लिम समुदाय के विरूद्ध नफरत फैलाने के विश्वव्यापी अभियान का हिस्सा बन रहा है . आतंकवाद की गैर जिम्मेदाराना  पत्रकारिता का स्वयं का चरित्र ही अपने आप में किसी  आतंकवाद से कम नहीं दिखाई पड़ता है.हद तो यह है कि हर पकड़ा ग़या 'संदिग्ध' मुस्लिम दूसरे दिन  'दुर्दांत आतंकी ' घोषित कर दिया जाता है और उसका नाम 'अलकायदा' 'इंडियन मुजाहिद्दीन ' 'तालिबान ' अथवा 'इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक एण्ड सिरिया ' से जोड़ दिया जाता है.आश्चर्य तो तब होता है जब मीडिया गिरफ्तार संदिग्ध को उपरोक्त में किसी एक आतंकी नेटवर्क का कमाण्डर घोषित करके ऐसी खबरें प्रसारित व प्रकाशित करता है ,जैसे कि सारी जांच मीडियाकर्मियों के समक्ष ही हुई हो.अपराध सिद्ध होने से पूर्व ही किसी को आतंकी घोषित किये जाने की यह मीडिया ट्रायल एक पूरे समुदाय को शक के दायरे में ले आई है .इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि आज इस्लाम और आतंकवाद को एक साथ देखा जाने लगा है.इसी दुष्प्रचार का नतीजा है कि आज हर दाढ़ी और टोपी वाला शख्स लोगों की नजरों में 'संदिग्ध आतंकी ' के रूप में चुभने लगा है.
हाल ही में जयपुर में इण्डियन ऑयल कार्पोरेशन के मार्केटिंग मैनेजर सिराजुद्दीन को 'एन्टी टेरेरिस्ट स्क्वॉयड' ने आई एस आई एस के नेटवर्क का हिस्सा होने के आरोप में गिरफ्तार किया .मीडिया के लिये यह एक महान उपलब्धि का क्षण बन गया.पल पल की खबरें परोसी जाने लगी-" आतंकी नेटवर्क का सरगना सिराजुद्दीन यहां रहता था ,यह करता था ,वह करता था.सोशल मीडिया के जरिये 13 देशों के चार लाख लोगों से जुड़ा था ,अजमेर के कई युवाओं के सम्पर्क में था.सुबह मिस्र ,इंडोनेशिया जैसे देशों में रिपोर्ट भेजता था ,तो शाम को खाड़ी देशों तथा दक्षिणी अफ्रिकी देशों को रिपोर्ट भेजता था.फिदायनी दस्ते तैयार कर रहा था.आदि इत्यादि "
दस दिन आतंक की खबरों का बाजार गर्म रहा ,सिराजुद्दीन को इस्लामिक स्टेट का एशिया कमाण्डर घोषित कर दिया गया ,जबकि जांच जारी है और जांच एजेन्सियों की और से इस तरह की जानकारियों का कोई ऑफिशियल बयान जारी नहीं हुआ है.गिरफ्तार किये गये मोहम्मद सिराजुद्दीन के पिता गुलबर्गा कर्नाटक निवासी मोहम्मद सरवर कहते है कि उनका बेटा पक्का वतनपरस्त है ,वह अपने मुल्क के खिलाफ कुछ भी नहीं कर सकता है.सिराजुद्दीन की पत्नि यास्मीन के मुताबिक -' उसने कभी भी  उसको कुछ भी रहस्यमय हरकत करते हुये नहीं देखा ,वह एक नेक धार्मिक मुसलमान के नाते लोगो की सहायता करनेवाला इंसान है.उसके बारे में यह सब सुनकर मैं विश्वास ही नहीं कर पा रही हूं '
खैर ,सच्चाई क्या है ,इसके बारे में कुछ भी कयास लगाना अभी जल्दबाजी ही होगी और जिस तरह का हमारी खुफिया एजेन्सियां ,पुलिस और आतंकरोधी दस्तों का पूर्वाग्रह युक्त साम्प्रदायिक व संवेदनहीन चरित्र है ,उसमें न्याय या सत्य के प्रकटीकरण की उम्मीद सिर्फ एक मृगतृष्णा ही है.यह देखा गया है कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में बरसों बाद 'कथित आतंकवादी' बरी कर दिये जाते है ,मगर तब तक उनकी जवानी बुढ़ापा बन जाती है.परिवार तबाह हो चुके होते है .
कुछ अरसे से पढ़े लिखे ,सुशिक्षित ,आई टी एक्सपर्ट भारतीय मुसलमान नौजवान खुफिया एजेन्सियों और आतंकवादी समूहों के निशाने पर है ,उन्हें पूर्वनियोजित योजना के तहत तबाह किया जा रहा है.इस तबाही या दमन चक्र के विरूद्ध उठने वाली कोई भी आवाज देशद्रोह मान ली जा रही है ,इसलिये राष्ट्र राज्य से भयभीत अल्पसंख्यक समूह अब बोलने से भी परहेज करने लगा है और बहुसंख्यक तबका मीडियाजनिक विभ्रमों का शिकार हो कर राज्य प्रायोजित दमन को 'उचित' मानने लगा है.जो कि अत्यंत निराशाजनक स्थिति है.
राजस्थान में गोपालगढ़ में मुस्लिम नरसंहार के आरोपी खुलेआम विचरण करते है.नौगांवा का होनहार मुस्लिम छात्र आरिफ जिसे पुलिस ने घर में घुसकर एके सैंतालीस से भून डाला ,उसके हत्यारे पुलिसकर्मियों को सजा नहीं मिलती है.भीलवाड़ा के इस्लामुद्दीन नामक नौजवान की जघन्य हत्या करने वाले हत्यारों का पता भी नहीं चलता है.गौ भक्तों द्वारा पीट पीट कर मार डाले गये डीडवाना के गफूर मियां के परिवार की सलामती की कोई चिन्ता नहीं करता है.हर दिन होने वाली साम्प्रदायिक वारदातों की आड़ में मुस्लिमों को लक्षित कर दमन चक्र निर्बाध रूप से जारी है.कहीं भी कोई सुनवाई नहीं है.लोग थाना ,कोर्ट कचहरियों में चक्कर काटते काटते बेबसी के कगार पर  है और उपर से शौर्यदिवस के जंगी प्रदर्शनों में 'संघ में आई शान -मियांजी जाओ पाकिस्तान ' या ' अब भारत में रहना है तो हिन्दु बन कर रहना होगा ' जैसे नारे जख्मों पर नमक छिड़क रहे है.
हर दिन दूरियां बढ़ रही है,बेलगाम बयानबाजी ,दिन प्रतिदिन गांव गांव में बढ रहे संचलन और हथियारों को लहराती हुई रैलियां किसी गृहयुद्ध के बीज बोती दिख रही है.
आश्चर्य की बात तो यह है कि हम अपना घर नहीं सम्भाल पा रहे है ,अपने ही लोगों का भरोसा नहीं जीत पा रहे है और हमारे रक्षामंत्री अमेरिका की सैर से लौट कर कह रहे है कि -संयुक्त राष्ट्र कहेगा तो हमारी सेना "इस्लामिक स्टेट" से लड़ने को तैयार है .समझ नहीं आता कि हम आ बैल मुझे मार का काम क्यों करना चाहते है.हमें समझना होगा कि हथियारों का  सौदागर अमेरिका कभी किसी का यार नहीं  हुआ है.उसके बहकावे में आकर हमें किसी युद्ध में अपनी सेना को झौंकने की गलती क्यों करनी चाहिये ? हम अपने इर्द गिर्द के सभी मुल्कों को वैसे भी दुश्मन बना ही चुके है.हाल ही में हमने अपनी असफल विदेश नीति के चलते नेपाल जैसे  स्वभाविक पड़ौसी मित्र तक को अपना विरोधी और चीन को दोस्त बना डाला है .अब हम क्या सारी मुस्लिम दुनिया को भी अपना दुश्मन बना लेंगे ? गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि कहीं हम अमेरिका जैसे देशों के बिछाये जाल में तो नहीं फंसते जा रहे है ? हमारा अमेरिकी प्रेम हमें डुबो भी सकता है .स्थिति यह होती जा रही है कि वाशिंगटन ही पूरा विमर्श तय कर रहा है.इस्लामिक आतंकवाद जैसी शब्दावली से लेकर किनसे लड़ना है और कब लड़ना है ? ईराक से लेकर अफगानिस्तान तक और सिरिया ये लेकर लीबिया तक आतंकी समूहों का निर्माण ,उनके सरंक्षण -संवर्धन में अमेरिका की हथियार इंडस्ट्री और सत्ता सब लगे हुये है .वैश्विक वर्चस्व की इस लड़ाई में पश्चिम का नया दुश्मन मुसलमान है ,मगर भारतीय राष्ट्र राज्य के लिये मुसलमान दुश्मन नहीं है .वे देश के सम्मानित नागरिक है.राष्ट्र निर्माण के सारथी है ,उनसे दुश्मनों जैसा सलूक बंद  होना चाहिये .उनके देशप्रेम पर सवालिया निशान लगाने की प्रवृति से पार पाना होगा.झण्डा ,दाढ़ी ,टोपी ,मदरसे ,आबादी ,मांसाहार जैसे कृत्रिम मुद्दे बनाकर किया जा रहा उनका दमन रोकना होगा.उन्हें न्याय और समानता के साथ अवसरों में समान रूप से भागीदार बनाना होगा ,ताकि हम एक शांतिपूर्ण तथा सुरक्षित विकसित राष्ट्र का स्वप्न पूरा कर सकें .
 (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. ईमेल [email protected])


मुंबई (महाराष्ट्र). केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी बीफ को लेकर चाहे जितनी सियासत करे, लेकिन जब बात पार्टी को मिलने वाले पैसे की आती है, तो पार्टी को बीफ़ निर्यात करने वाली कंपनी से भी चंदा लेने में कोई आपत्ति नज़र नहीं आती.
चुनाव आयोग की वेबसाइट के हवाले से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भाजपा को साल 2014-15 में बीफ़ निर्यात करने वाली महाराष्ट्र की कंपनी फ्राइगोरीफिको अल्लाना प्राइवेट लिमिटेड ने चेक के माध्यम से 50 लाख रुपये का चंदा दिया है. यही कंपनी 2013-14 में भी 75 लाख का चंदा दे चुकी है.
महाराष्ट्र में 1986 में रजिस्टर्ड इस कंपनी के चार निदेशकों में  सिराज महमूद और  रफ़ीक़ रज्जाक पटेल, इस्माइल गनी मोहम्मद और मोइज मंसूर चूनावाला के नाम है.  बीफ़ निर्यात करने वाली एक अन्य कंपनी इनडाग्रो फूडस लिमिटेड ने भी 75 लाख रुपये का चंदा भाजपा को दिया है. तीसरी कंपनी फ्राइगेरियो कॉनवेरवा अल्लाना लिमिटेड ने भी इस साल  50 लाख रुपये का चंदा दिया है.

ग़ौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ काबीना मंत्री मुहम्मद आज़म ख़ान ने भाजपा पर एक बीफ़ निर्यातक से ‘200 करोड़ रुपये का चंदा लेने का आरोप लगाया है. पार्टी ने हालांकि इस आरोप को बेबुनियाद बताते हुए सिरे से ख़ारिज कर दिया है.


लाल बिहारी लाल
दिल्ली. आज दिल्ली विश्व में टोकियो के बाद सर्वाधिक प्रदूषित शहर है. सन 2014 में टोकियो की आबादी 3.80 करोड़ थी, जबकि दिल्ली की 2.5 करोड़ आबादी थी. बढ़ती हुई आबादी के दर को देख के कहा जा सकता है कि सन 2030 तक दिल्ली दूसरे नंबर पर ही प्रदूशित शहरों की श्रेणी में रहेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) एंव यूरोपियन यूनियन ने पी.एम. 2.5 प्रदूषण का स्तर प्रतिघन मीटर 25 माइक्रोग्राम निर्धारित किया है, जबकि अमेरिका इससे भी कड़ा यह स्तर
12 माइक्रोग्राम निर्धारित किया है. दिल्ली में यह स्तर सामान्यतः 317 है कभी कभार इससे ज्यादा भी हो जाता है.  यह स्तर अमेरिका से लगभग 30 गुना और विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानको से 15 गुना ज्यादा है. इससे कैंसर,दिल की
बीमारियां, अस्थमा एवं अन्य घातक बिमारियां होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.  भारी यातायात,स्थानीय उद्योग,थर्मल पावर प्लांट एवं झूग्गियों में कोयले पर खाना बनाना दिल्ली में वायू प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में काफी योगदान करते है. अतः दिल्ली की जनता प्रदूषण से काफी बेहाल है. आज जरूरत है कि इससे निजात
के लिए कुछ किया जाए.

भारत की भूमी दुनिया के 2.4 प्रतिशत जबकि आबादी लगभग 18 प्रतिशत है. इस तरह प्रति ब्यक्ति संसाधनों पर अन्य देशों की वनिस्पत काफी दबाव है, जिससे तेजी से शहरीकरण एवं औद्योदिकरण हो रहा है. सन 1947 में वर्ष 2002
तक पानी की उपलब्धता 70 प्रतिशत घटकर 1822 घनमीटर प्रति व्यक्ति रह गया है. अगर इसी तरह संसाधनों का दोहन तेजी से होता रहा तो मावव जल के बिना मछली की तरह तड़प-तड़प कर जान दे देगा. भारत में वनों का औसत भौगोलिक
क्षेत्रफल 18.34 प्रतिशत है, जो कि 33 प्रतिशत के मनदंड से काफी कम है. इसमें भी 50 प्रतिशत म.प्र.(20.7) और पूर्वोत्तर के राज्यो में (25.7) प्रतिशत है बाकी  के राज्य वन के मामले में काफी निर्धन है. वन की कमी से जलवायु परिवर्तन हो
रहा है. अभी तामिलनाड्ड़ू जल गांडव से ग्रस्त है.

प्रदूषण के मामले में केन्द्र एवं राज्य सरकारें नियम तो बना रखा है पर इस पर सख्ती से अमल नहीं हो पाता है. यही कारण है की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ा है। यहा पर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था काफी लचर
है. आम आदमी की नई सरकार बनी थी तो लोगो ने सोचा की काफी सुधार होगा पर यह सरकार पिछली सरकार से भी फिसड्डी साबित हुई। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टीश टी.एस. ठाकुर के फटकार पर दिल्ली सरकार ने फौरी तौर पर
गाड़ियो के ओड एंव इभेन नंबर एक-एक दिन चलाने के प्रस्ताव पर बिचार कर रही है, पर यह स्थायी समाधान नही हो सकता है. इसलिए जरूरी है कि दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए और नियमों पर सख्ती से
अमल हो तथा लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाए. जब राजनीतिज्ञों को वोट की राजनीति से बाहर आकर ही देशहित एवं समाजहित में कुछ किया जाए, तभी देशवासियो एवं दिल्ली वासियों का भला हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर 2015 को केन्द्र एवं राच्य सरकार को सुझाव के साथ तलब किया है. देखें जनप्रतिनिधि जनता के हितों की रक्षा के लिए क्या ठोस  कदम उठाते हैं.
(लेखक-पर्यावरणप्रेमी और लाल कला मंच के सचिव हैं)


हिसार (हरियाणा). अखिल भारतीय हिन्दू महासभा ने अपने पूर्व घोषित बहू लाओ और बेटी बचाओ घोषणा के मुताबिक आज यहां एक कार्यक्रम में प्रेम विवाह करने वाले हिंदू  युवक और मुस्लिम युवती को सम्मानित किया. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले के शाहजहांपुर निवासी हिन्दू युवक शिव शंकर ने ज़िले की मुस्लिम लड़की सितारा के साथ कुछ महीने पहले ही सहारनपुर के आर्य समाज मंदिर में शादी की है.

युवती ने ने शादी के बाद हिन्दू  धर्म भी अपना लिया है. अब उसका नाम सोनाली पाल है.  इस मौक़े पर महासभा की प्रदेश युवा इकाई के अध्यक्ष विनोद शर्मा ने कहा कि आज का कार्यक्रम उस ऐलान के तहत था, जिसमें मुस्लिम लड़कियों से शादी करने वाले हिन्दू युवकों को उनकी पत्नी सहित सम्मानित किया जाएगा.

उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री से दम्पति को सुरक्षा मुहैया कराने की भी मांग की. इस मौक़े पर सितारा उर्फ़ सोनाली पाल ने कहा कि वह शिव शंकर से लम्बे समय से प्यार करती थी और बालिग़ होने पर उसने अपनी मर्ज़ी से उसके साथ शादी की है. उसने कहा कि हिन्दू समाज में महिलाओं का पूरा सम्मान होता है, लेकिन अब उसे अपनी जान का ख़तरा है. उत्तर प्रदेश के कुछ प्रभावशाली लोग उसे जाने से मारने की धमकी दे रहे हैं. उसने कहा इससे पूर्व हम पर पहले भी दो बार जानलेवा हमले हो चुके हैं.  


अहमदाबाद (गुजरात). पहचान छिपाकर एक हिंदू लड़की से शादी करने वाले मुस्लिम आरोपी को गुजरात हाईकोर्ट के एक जज ने न सिर्फ जमानत देने से इनकार कर दिया, बल्कि उसे अपने नाम से सबक लेने की नसीहत भी दी. आरोपी पहले से शादीशुदा है और उसने हिंदू लड़की को झांसा देकर उससे दूसरी शादी की.
यहां अश्मत अली सैयद नाम के आदमी ने एक हिंदू लड़की से पहचान छुपाकर शादी की. अश्मत अली पहले से शादीशुदा है और उसके बच्चे भी हैं. लड़की ने सच्चाई पता लगने के बाद अश्मत अली के खिलाफ केस दर्ज करा दिया. आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया. आरोपी ने जमानत के लिए गुजरात हाईकोर्ट में अपील दायर की.
पूरा मामला सुनने के बाद हाईकोर्ट के जज जेड.के. सैयद ने आरोपी से कहा, “तुमने लड़की को यह नहीं बताया कि तुम मुस्लिम हो और पहले से शादीशुदा हो. फिर तुमने लड़की को धोखा देकर उससे शादी की. तुमने दूसरी शादी करने के लिए इतनी बड़ी धोखेबाजी की. मैं तुम्हें जमानत कैसे दे दूं.” जज का कड़ा रुख देखते हुए आरोपी के वकील ने जमानत की अर्जी वापस ले ली.
हाईकोर्ट द्वारा अश्मत अली की जमानत अर्जी खारिज करने के पहले सेशन कोर्ट भी उसे जमानत देने से इनकार कर चुका है. सेशन कोर्ट ने आरोपी की जमानत अर्जी ठुकराते हुए कहा था, “आरोपी ने हिंदू बनकर लड़की को धोखा दिया और उससे शादी की. यह गंभीर मामला है. अगर हम इस तरह के क्राइम्स को हल्के में लेते हैं, तो इसके खतरनाक नतीजे सामने आ सकते हैं.”


सलीम अख़्तर सिद्दीक़ी
बिहार में भाजपा गठबंधन की हार की बुनियाद संघ प्रमुख मोहन भागवत के 21 सितंबर को दिए गए उस बयान ने रख दी थी, जिसमें उन्होंने आरक्षण की समीक्षा किए जाने की बात कही थी। भाजपा इस गफलत में भी रही कि ‘मोदी मैजिक’ के सामने महंगाई कोई मुद्दा नहीं है। लेकिन ऐसा नहीं था।सी राज्य के चुनाव नतीजों को लेकर इतनी उत्सुकता कभी नहीं रही, जितनी इस साल फरवरी में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर रही थी और और अब बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर रही है। दिल्ली चुनाव केंद्र में भाजपा के प्रचंड बहुमत से सत्ता में आने के नौ महीने बाद चुनाव हुए थे। माना जा रहा था कि यह चुनाव भाजपा आसानी से जीत लेगी, क्योंकि मोदी के विकास मॉडल का खुमार बाकी माना जा रहा था, लेकिन दिल्ली ने भाजपा की खुमारी उतारने की जो शुरुआत की थी, वह बिहार में भी जारी रही। बिहार ने साबित किया कि जनता सब कुछसह सकती है, लेकिन सांप्रदायिकता और देश को बांटने वाली नीति नहीं सह सकती। इस चुनाव में भाजपा की ओर से उठाए गए कुछ मुद्दे पार्टी पर ही भारी पड़ गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 जुलाई को मुजफ्फरपुर में परिवर्तन रैली में कहा था कि नीतीश कुमार के राजनीतिक डीएनए में ही खराबी है। जिस तरह से नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान सोनिया गांधी के नीच राजनीति वाले बयान को जाति से जोड़ दिया था, उसी तरह नीतीश ने डीएनए वाले मोदी के बयान को बिहार की अस्मिता से जोड़कर मोदी पर जबरदस्त प्रहार किए। नतीजे बताते हैं कि डीएनए वाला मुद्दा भाजपा और उससे ज्यादा मोदी पर भारी पड़ा।

वैसे बिहार में भाजपा गठबंधन की हार की बुनियाद संघ प्रमुख मोहन भागवत के 21 सितंबर को दिए गए उस बयान ने रख दी थी, जिसमें उन्होंने आरक्षण की समीक्षा किए जाने की बात कही थी। लालू प्रसाद यादव ने उसे लपक किया। मामले की नजाकत देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आखिर-आखिर तक अपनी चुनावी रैलियों में यह आश्वासन दिया कि आरक्षण में बदलाव नहीं किया जा सकता। लेकिन वे महादलितों, दलितों और पिछड़ों में विश्वास नहीं जगा सके। तीनों ने भाजपा के विरुद्ध वोट दिया। आरक्षण मुद्दे पर घिरती भाजपा को जब कुछ नहीं सूझा तो उत्तर प्रदेश के दादरी मे गोमांस रखने के शक में अखलाक की पीट-पीटकर हत्या किए जाने के बाद उठे बीफ या गोमांस के मुद्दे को वह बिहार में ले गई। उसकी सोच थी कि गोमांस जैसे भावनात्मक मुद्दे के आधार पर हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में कर सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। गोमांस मुद्दे को भी वोटरों ने नकार दिया। दरअसल, भाजपा अभी तक ‘मोदी मैजिक’ के मोह से बाहर नहीं निकली है। हालांकि उसे दिल्ली में मिली करारी शिकस्त के बाद ही समझ जाना चाहिए था कि मोदी का चेहरा लोकसभा चुनाव में तो ठीक था, लेकिन राज्य के चुनावों में उसी राज्य का चेहरा सामने होना चाहिए, जिसे उसमें मुख्यमंत्री बनना हो। बिहार में वह कोईऐसा चेहरा पेश नहीं कर पाई, जिसे सामने करके चुनाव लड़ा जा सके। सच तो यह है कि बिहार में नीतीश का सामना करने लायक भाजपा के पास ऐसा कोईचेहरा था भी नहीं। महागठबंधन ने भाजपा का इस कमजोरी का फायदा उठाया और नीतीश ने ‘बिहारी बनाम बाहरी’ को चुनावी मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ा।

भाजपा इस गफलत में भी रही कि ‘मोदी मैजिक’ के सामने महंगाईकोईमुद्दा नहीं है। लेकिन ऐसा नहीं था। लगातार महंगाई बढ़ती बिहार में भी मुद्दा बनी, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। भाजपा यह भूल गईकि बिहार जैसे राज्य में जहां की लगभग पचास प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी गुजारती है, उसके लिए 200 रुपये किलो दाल खरीदना कितना दुष्कर रहा होगा। पांचवा चरण आते-आते तो सरसों के तेल के साथ अन्य खाद्य तेलों में भी आग लग गई।

दिल्ली की तरह बिहार में भी दूसरे राज्य के कार्यकर्ताओं को स्थानीय कार्यकर्ताओं के सिर पर लाकर बिठा दिया गया। हद यह कि शत्रुघ्न सिन्हा जैसे बिहारी नेता को हाशिए पर डाल दिया गया। शत्रुघ्न सिन्हा ने तो बार-बार अपनी पीड़ा ट्विटके जरिए जाहिर भी की, लेकिन उनकी पीड़ा को नजरअंदाज किया गया। नतीजा यह हुआ कि निराश होकर वह एक तरह से नीतीश के खेमे में चले गए। अपनी अनदेखी और बाहरी कार्यकर्ताओं के हस्तक्षेप की वजह से स्थानीय कार्यकर्ता एक तरह से घर बैठ गए। चुनाव से ठीक एक दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के लिए एक लाख पच्चीस हजार करोड़ रुपये का पैकेज देने का ऐलान किया था। भाजपा ने इसे एक तरह से अपना ‘मास्टर स्ट्रोक’ माना था। भाजपा के रणनीतिकार मानकर चल रहे थे कि विकास के नाम पर इतना बड़ा पैकेज बिहार के लोगों को आकर्षित करेगा ही और वे भाजपा की झोली वोटों से भर देंगे। लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ। अब सवाल खड़ा हो गया है कि क्या अब केंद्र सरकार बिहार को वह स्पेशल पैकेज देगी या नहीं? अगर वह पैकेज नहीं देती है, तो मोदी सरकार की विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाएगी। इसलिए संभव है कि मोदी सरकार ‘अमानत में ख्यानत’ नहीं करेगी। भाजपा बिहार चुनाव परिणामों से यह भी सबक ले कि देश में बढ़ती असहिष्णुता ने भी बिहार के चुनाव में असर डाला है। विद्रूप यह रहा कि भाजपा के बयानवीर नेता एक से एक भड़काऊ बयान जारी करते रहे और प्रधानमंत्री मोदी मौन धारण किए रहे। हद यह हो गईथी कि बढ़ती असहिष्णुता का विरोध करने वालों को राष्ट्र विरोधी करार दिया गया। उम्मीद की जानी चाहिए कि भाजपा बिहार के नतीजों से कुछसबक लेगी।
(लेखक जनवाणी से जुड़े हैं) 


अहमदाबाद (गुजरात)  गुजरात हाईकोर्ट ने कड़े शब्दों में आदेश जारी करते हुए कहा है कि एक से ज्यादा पत्नियां रखने के लिए मुस्लिम पुरुषों की ओर से कुरान की गलत व्याख्या की जा रही है और ये लोग ‘स्वार्थी कारणों’ के चलते बहुविवाह के प्रावधान का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं.

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि देश समान नागरिक संहिता को अपना ले क्योंकि ऐसे प्रावधान संविधान का उल्लंघन हैं. न्यायाधीश जेबी पारदीवाला ने कल भारतीय दंड संहिता की धारा 494 से जुड़ा आदेश सुनाते हुए ये टिप्पणियां कीं. भादंसं की यह धारा एक से ज्यादा पत्नियां रखने पर सजा से जुडी है. याचिकाकर्ता जफर अब्बास मर्चेंट ने उच्च न्यायालय से संपर्क करके उसके खिलाफ उसकी पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी को खारिज करने का अनुरोध किया था. पत्नी ने आरोप लगाया था कि जफर ने उसकी सहमति के बिना किसी अन्य महिला से शादी कर ली.

प्राथमिकी में, जफर की पत्नी ने उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 494 (पति या पत्नी के जीवित रहते हुए दोबारा विवाह करना) का हवाला दिया.  हालांकि जफर ने अपनी याचिका में दावा किया था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ मुसलमान पुरुषों को चार बार विवाह करने की अनुमति देता है और इसलिए उसके खिलाफ दायर प्राथमिकी कानूनी जांच के दायरे में नहीं आती. पारदीवाला ने अपने आदेश में कहा कि मुसलमान पुरुष एक से अधिक पत्नियां रखने के लिए कुरान की गलत व्याख्या कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुरान में जब बहुविवाह की अनुमति दी गई थी, तो इसका एक उचित कारण था. आज जब पुरूष इस प्रावधान का इस्तेमाल करते हैं तो वे ऐसा स्वार्थ के कारण करते हैं। बहुविवाह का कुरान में केवल एक बार जिक्र किया गया है और यह सशर्त बहुविवाह के बारे में है।

अदालत ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ मुसलमान को इस बात की अनुमति नहीं देता है कि वह एक पत्नी के साथ निर्दयतापूर्ण व्यवहार करे, उसे उस घर से बाहर निकाल दे, जहां वह ब्याह कर आई थी और इसके बाद दूसरी शादी कर ले. हालांकि ऐसी स्थिति से निपटने के लिए देश में कोई कानून नहीं है. इस देश में कोई समान नागरिक संहिता नहीं है. अदालत ने समान नागरिक संहिता के संबंध में आवश्यक कदम उठाने की जिम्मेदारी सरकार को सौंपी. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आधुनिक, प्रगतिशील सोच के आधार पर भारत को इस प्रथा को त्यागना चाहिए और समान नागरिक संहिता की स्थापना करनी चाहिए.

अदालत ने आगे कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत चार पत्नियां रखने की अनुमति संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि बहुविवाह और पत्नी की सहमति के बिना एकपक्षीय तलाक अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष सभी का समान होना) और अनुच्छेद 15 (जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं) का उल्लंघन है. यदि राज्य इस नियम को बर्दाश्त करता है तो वह महिला के साथ भेदभाव में साझीदार हो जाता है जो कि उसके अपने ही नियमों के तहत अवैध है.


नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में गोहत्या रोकने और गोमांस एवं इस प्रकार के उत्पादों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने संबंधी एक कानून लागू करने की मांग करने वाली जनहित याचिका को आज खारिज करते हुए कहा कि यह एक विचार की गलत व्याख्या है. आप सरकार ने अदालत को सूचित किया कि पशुधन की रक्षा के लिए पहले ही दिल्ली कृषि पशुधन संरक्षण कानून है जिसके बाद मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की एक पीठ ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त स्थायी वकील संजय घोष ने दावा किया कि याचिका प्रचार पाने का हथकंडा है और इसे कड़ा दंड लगाते हुए खारिज कर दिया जाना चाहिए.

उन्होंने अदालत को सूचित किया कि इस कानून के तहत कोई भी व्यक्ति कृषि पशुधन की हत्या करने के मकसद से या यह जानते हुए कि उसकी हत्या की जा सकती है, दिल्ली के किसी भी हिस्से से कृषि पशुधन को दिल्ली के बाहर किसी स्थान पर नहीं लेकर जाएगा या उसे ले जाने का प्रस्ताव नहीं रखेगा. घोष ने कहा कि दिल्ली सरकार के पास पांच आश्रय गृह हैं जिनमें 23,000 मवेशी रखे जा सकते हैं। हालांकि अभी इन मवेशियों की संख्या 10,000 है.
वकील ने कहा, यदि याचिकाकर्ता के पास ऐसा कोई मवेशी है, तो वह इसे हमें भेज सकता है. दिल्ली सरकार के वकील की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा, यह रिट याचिका एक गलत विचार है और इसे खारिज किया जाता है.

संक्षिप्त सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि वह कानून लागू करने के लिए कोई आदेश जारी नहीं कर सकती और इस मामले में राज्य और केंद्र सरकार निर्णय ले सकती है। अदालत ने कहा, उन्हें इस मामले पर निर्णय लेने दीजिए। हम इस मामले में सुनवाई करने के लिए तैयार नहीं हैं।
स्वामी सत्यानंद चक्रधारी ने याचिका दायर करके राज्य सरकार को यह आदेश दिए जाने की मांग की थी कि वह जम्मू-कश्मीर में लागू उस 1932 रणबीर आचार संहिता की तरह एक कानून लागू करे जिसके तहत गोहत्या और इस प्रकार के पशुओं की हत्या करने पर 10 साल तक के कारावास की सजा सुनाने के साथ साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
वकील नवल किशोर झा के जरिए दायर की गई याचिका में राज्य सरकार को एक गोकुल ग्राम स्थापित करने का आदेश देने की भी बात कही गई है। 


चेन्नई (तमिलनाडु) बच्चों से बदसुलूकी और बलात्कार के दोषियों की सजा पर मद्रास हाईकोर्ट ने एक सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने आदेश जारी कर कहा है कि बच्चों का रेप करने वालों को नपुंसक या बधिया बना देना चाहिए. कोर्ट ने ये फैसला 2011 में 15 साल के बच्चे के यौन उत्पीडऩ के आरोपी ब्रिटिश नागरिक के केस में सुनाया है.
शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह टिप्पणी की. कोर्ट ने आगे कहा कि बच्चों के साथ इस तरह की हरकतें देश में सजा के क्रूरतम मॉडल को आकर्षित करती हैं. अदालत ने बेहद तल्ख शब्दों में कहा, 'भारत के विभिन्न हिस्सों में बच्चों से गैंगरेप की विभत्स घटनाओं को लेकर अदालत बेखर या मूकदर्शक बना नहीं रह सकता.
जस्टिस एन किरुबकरण ने अपने आदेश में कहा, 'बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) जैसे कड़े कानून होने के बावजूद बच्चों के खिलाफ अपराध बदस्तूर बढ़ रह हैं' साल 2012 और 2014 के बीच ऐसे अपराधों की संख्या 38,172 से बढ़कर 89,423 तक पहुंच गई है.
जज ने कहा, 'अदालत का मानना है कि बच्चों के बलात्कारियों को बधिया करने से जादुई नतीजे देखने को मिलेंगे' उन्होंने कहा कि इस बुराई में निपटने में ये कानून बेअसर और नाकाबिल साबित हो रहे हैं.  उन्होंने साथ ही कहा कि रूस, पोलैंड और अमेरिका के नौ राज्यों में ऐसे अपराधियों को बधिया करने का प्रावधान है.
कोर्ट ने कहा, 'बधिया करने का सुझाव बर्बर लग सकता है, लेकिन इस प्रकार के क्रूर अपराध ऐसी ही बर्बर सजाओं के लिए माहौल तैयार करते हैं. बहुत से लोग इस बात से सहमत नहीं होंगे, लेकिन परंपरागत कानून ऐसे मामलों में सकारात्मक परिणाम नहीं दे सके हैं.

फ़िरदौस ख़ान
हरियाणा में जनता ने भाजपा को अच्छे दिनों के नाम पर वोट क्या दिए कि उनके बुरे दिन शुरू हो गए. हरियाणा में बिजली बिलों के ज़रिये अवाम को ख़ूब लूटा जा रहा है. हरियाणा की भाजपा सरकार ने एक ही साल के भीतर मासिक बिजली दरों में 42 फ़ीसद का इज़ाफ़ा करके पहले ही महंगाई की मार से हल्कान जनता की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं. क़ाबिले-ग़ौर है कि कांग्रेस सरकार ने दस साल में 44 फ़ीसद की बढ़ोतरी की थी. इतना ही नहीं, बड़ी बेशर्मी से राज्य का बिजली निगम दूसरे राज्यों से कम रेट होने का दावा भी कर रहा है. जबकि सच्चाई यही है कि हरियाणा में बिजली राजस्थान, हिमाचल, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और चंडीगढ़ से ज़्यादा महंगी है. हरियाणा में 50 यूनिट मासिक बिजली खपत पर 3.95 रुपये चुकाने पड़ते हैं, जबकि राजस्थान में यह दर प्रति यूनिट 3.25 रुपये, हिमाचल में 2.85 रुपये, दिल्ली में 2.52 रुपये, उत्तर प्रदेश में 2.20 रुपये, बिहार में 2.10 रुपये और चंडीगढ़ में 1.25 रुपये, प्रति यूनिट है. इतना ही नहीं, हरियाणा में एफ़एसए 2010 से ख़त्म होने के बाद भी प्रति यूनिट 1.19 रुपये से लेकर 1.74 रुपये तक वसूले जा रहे हैं. कहने भर के लिए हरियाणा विद्युत नियामक आयोग ने बिजली कंपनियों के लिए बिजली ख़रीद की कीमत 3.90 रुपये प्रति यूनिट तय की हुई है. इसके बावजूद फ़्यूल सरचार्ज एरियर (एफ़एसए) समेत उपभोक्ताओं को 9 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिल चुकाना पड़ रहा है.  अमानवीयता की हद तो ये है कि बिजली कंपनियों ने बहुत महंगी बिजली होने के बावजूद नियामक आयोग में दरों में 15 फ़ीसद बढ़ोतरी पर पुनर्विचार करने की एक याचिका भी दाख़िल कर रखी है.

इतना ही नहीं, स्लैब में हुए बदलाव से भी लोग बुरी तरह  प्रभावित हुए हैं.  दरअसल, टेलीस्कोपिक स्लैब प्रणाली को नॉन-टेलीस्कोपिक प्रणाली में बदल दिया गया. पहले 0 से 40, 41 से 250, 251 से 500, 501 से 800 यूनिट प्रतिमाह टेलीस्कोपिक बिल आता था, जिससे हर स्लैब की दरों का 800 यूनिट तक फ़ायदा होता था. लेकिन अब 0 से 50, 51 से 100 स्लैब के बाद सीधा 0 से 250 व 251 से 500 और 500 के बाद स्लैब प्रणाली बिल्कुल ख़त्म कर दी गई. 101 यूनिट मासिक खपत पर पहले 4.88 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिल चुकाना पड़ता था, लेकिन अब यह दर 6.52 रुपये प्रति यूनिट हो गई, जो 33.60 फ़ीसद ज़्यादा है. 100 यूनिट का कुल बिल 511.40 रुपये होगा, जबकि 101 यूनिट का बिल 147 रुपये से बढ़कर 658.55 रुपये हो गया है. सिर्फ़ एक यूनिट ज़्यादा खपत करने से 147 रुपये का फ़र्क़ पड़ गया है. पहले 250 प्रति यूनिट प्रति माह बिजली की दर 5.23 रुपये थी, जिसमें 23.12 फ़ीसद की बढ़ोतरी हो गई और  रेट 6.43 रुपये प्रति यूनिट हो गया. इसी तरह 501 यूनिट पर बिजली की दर पहले 5.96 रुपये प्रति यूनिट थी, जो अब बढ़कर 8.40 रुपये हो गई है, जो 42 फ़ीसद ज़्यादा है. अगर उपभोक्ता 500 यूनिट ख़र्च करेगा, तो उसका बिल 3608.40 रुपए आएगा. एक यूनिट ज़्यादा ख़र्च  करने पर यही बिल 4309.34 रुपये हो जाता है, यानी एक यूनिट बिजली ज़्यादा ख़र्च करने पर 601 रुपये चुकाने होंगे.

पूर्व बिजली मंत्री संपत सिंह के मुताबिक़ व्यावसायिक और औद्योगिक बिलों में फ़िक्सड चार्जेज और दरें बढ़ाकर उपभोक्ताओं को दोहरा लूटा जा रहा है. बिजली निगमों की बक़ाया वसूली तक़रीबन छह हज़ार करोड़ रुपये है. उन पर 42 हज़ार करोड़ का क़र्ज़ है. उत्तरी हरियाणा बिजली निगम में  40 और दक्षिण हरियाणा बिजली निगम में 32 फ़ीसद एटीएंडसी लोस है.  इसी साल 7 मई को बढ़ाई गई बिजली की दरें 1 अप्रैल 2015 से लागू की दी गईं, जबकि बिजली के बिल सितंबर माह में बढ़े हुए बक़ाया बिलों के साथ कई तरह के चार्जिज जोड़ दिए गए हैं.

उत्तरी हरियाणा बिजली वितरण निगम के प्रबंध निदेशक नितिन यादव का कहना है कि बिजली कंपनियों ने अपनी मर्ज़ी से बिजली के दाम नहीं बढ़ाए हैं. इसके लिए बाक़ायदा  हरियाणा विद्युत नियामक आयोग ने अनुमति दे है. बिजली के बढ़े हुए दाम और वसूल किए जाने वाले सभी बिलों का सरकारी एजेंसी से ऒडिट होता है. इसलिए कोई भी पैसा बिजली कंपनियों की जेब में नहीं जाता. यानी बढ़े हुए बिलों की रक़म सरकारी ख़ज़ाने में जा रही है. दरअसल, सरकार ने अपनी जेब भरने के लिए जनता पर बिजली बिलों का बोझ डाल दिया है.

हरियाणा में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो), सीपीआईएम के कार्यकर्ता महंगी बिजली दरों के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आए हैं. इनेलो कार्यकर्ताओं ने ज़िला मुख्यालयों पर धरना देकर सरकार के ख़िलाफ़ जमकर नारेबाज़ी की. इससे पहले आम आदमी पार्टी ने ज़िला स्तर पर बिजली के बिलों को जलाकर विरोध किया था. पार्टी के नेता प्रदेश में लगातार जनसभाओं का आयोजन भी कर रहे हैं. विपक्षी दर बिजली की बढ़ी दरें वापस लेने, फ़्यूल सरचार्ज ख़त्म करने और पहले की स्लैब प्रणाली बहाल करने की मांग कर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि उन्होंने सरकार को एक साल का वक़्त दिया था. तब उन्हें यह मालूम नहीं था कि उन्हें दो महीने के भीतर ही सरकार के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि सरकार जनता की जेब पर डाका डाल रही है. हुड्डा ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ पंचकूला में धरना दिया. उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार के पास हमारे सवालों का कोई तर्कसंगत जवाब नहीं है, इसलिए वह झूठा प्रचार कर रही है कि बिलों की बढ़ोतरी का फ़ैसला पिछली सरकार ने 2013 में ले लिया था, जबकि हक़ीक़त यह है कि वह वित्त विभाग का एक प्रस्ताव था, जिसे 2014 अक्टूबर, जब तक उनकी सरकार रही, तो उन्होंने बिजली के बिलों में बढ़ोतरी के किसी भी फ़ैसले को लागू नहीं होने दिया. अगर दि पिछली सरकार के फ़ैसलों को भाजपा सरकार इतना ही सम्मान देती है, तो सरकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र 58 साल की बजाय 60 साल करने, बुढ़ापा पेंशन 1500 रुपये महीना करने और सरकारी कर्मचारियों को पंजाब के समान वेतनमान देने आदि जैसे पिछली सरकार के जनहितकारी फ़ैसलों को क्यों पलट दिया ? हुड्डा ने कहा कि उन्होंने अपनी सियासी ज़िन्दगी में बिजली की दरों में ऐसी ग़ैर ज़रूरी और अंधाधुंध बढ़ोतरी कभी नहीं देखी थी. बिजली कंपनियां उपभोक्ताओं अनाप-शनाप बिल भेज रही हैं. कुछ उपभोक्ताओं को तो मकान की क़ीमत से ज़्यादा बिजली का बिल भेजा गया है. उन्होंने राज्य सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि हरियाणा की जनता इस सरकारी अत्याचार को किसी भी हाल में सहन नहीं करेगी और इसका मुंहतोड़ जवाब देगी. सरकार या तो बढ़ी हुई दरों को वापस ले, वरना इसके गंभीर नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहे.

हुड्डा ने सरकार से दो सवाल करते हुए पूछा कि बिजली की दरों में बढ़ोतरी क्यों की गई, दूसरा जनता बढ़ी हुई दरों के भारी-भरकम बिजली बिलों का भुगतान कैसे करेगी ?
उन्होंने कहा कि जहां तक बिजली बिलों में बढ़ोतरी का सवाल है, न तो सरकार ने कोई नया थर्मल प्लांट लगाया है जैसा कि उनके कार्यकाल में चार नये थर्मल प्लांट लगे थे, जिसकी वजह से हरियाणा बिजली में आत्मनिर्भर हुआ था. न ही भाजपा सरकार ने बिजली का कोई बिल माफ़ किया है, जैसा कि उन्होंने सरकार बनते ही 1600 करोड़ रुपये के बिजली के बिल माफ़ किए थे. उन्होंने कहा कि जनता इन भारी-भरकम बिलों का भुगतान करेगी कैसे ? किसानों को फ़सल मंडियों में लूटा जा रहा है. मुनाफ़ा तो दूर उसे लागत भी नहीं मिल रही है. कांग्रेस शासन में 6000 रुपये क्विंटल तक बिकने वाला धान 1200 रुपये में बिक रहा है.गन्ने की क़ीमत तक का भुगतान नहीं हुआ है. कारोबार चौपट हो गया है. सरकारी कर्मचारियों को उनकी सरकार ने जो पंजाब स्केल दिया था, उसे वापस ले लिया गया है. 25 हज़ार अस्थाई कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया है. वृद्ध अवस्था सम्मान भत्ता और विधवा पेंशन 1500 रुपये से घटा कर 1200 रुपये कर दिया है. ग़रीब आदमी का भोजन दाल 200 रुपये किलो तक हो गई है. सरकार ने डीज़ल पर वैट 8 फ़ीसद से बढ़ाकर 17 फ़ीसद कर दिया है. सरकार ने हरियाणा में कोई तबक़ा ऐसा नहीं छोड़ा, जिस पर आर्थिक चोट न मारी हो.


ग़ौरतलब है कि हरियाणा में बिजली और सत्ता परिवर्तन का चोली-दामन का साथ रहा है. बिजली ने पूर्व की बंसीलाल सरकार को मुश्किल में डाल दिया था. इंडियन नेशनल लोकदल की सरकार भी इसका सामना कर चुकी है. लेकिन कांग्रेस की हुड्डा सरकार ने अपने दस साल के कार्यकाल में अवाम को बिजली संकट से बचाया था. साथ ही उन्हें पर्याप्त बिजली देने की भी पूरी कोशिश की. इसलिए महंगाई से परेशान जनता को अब कांग्रेस शासन के अच्छे दिन याद आने लगे हैं. लोगों का कहना है कि जब से केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार आई है, तब से उनकी मुश्किलें बहुत ज़्यादा बढ़ गई हैं. लगातार बढ़ती महंगाई की वजह से उनका ख़र्च बढ़ गया है, लेकिन आमदनी सीमित है. ऐसे में मोटे बिजली के बिल आ रहे हैं. वे बिजली के बिल भरें, या अपने जीने का सामान करें.

बहरहाल, अगर जनता को चैन से जीना है, तो इस नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी ही होगी. अवाम के हक़ की लड़ाई लड़ने वाले लोगों का साथ देना होगा.
ऐ ख़ाक नशीनों उठ बैठो, वह वक़्त क़रीब आ पहुंचा है
जब तख़्त गिराये जाएंगे जब ताज उछाले जाएंगे...


सुनील कौल
अपनी नैसर्गिक और अगाध खूबसूरती के लिए कश्मीर की वादियों का कवियों और गायकों ने भरपूर चित्रण किया है जिन्होंने इसे विभिन्न रस्मों, संस्कृतियों और जीने के तरीके का एक खुशनुमा स्थान बताया है। यहां की जमीन और लोगों की आत्मसात करने वाली प्रवृत्तियों ने जीवन का एक अनूठा दर्शन पैदा किया है जिसमें हर धर्म के बुनियादों को न केवल उचित जगह मिली है बल्कि पर्याप्त महत्व भी मिला है। कश्मीर को न केवल "धरती पर स्वर्ग" के रूप में जाना जाता है बल्कि अलग-अलग मजहबों और मूल्यों का पालन करने के बावजूद दुनिया भर में मानव मूल्यों के एक स्वर्ग के रूप में भी यह अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता है। कश्मीर के मूल तत्व की पहचान इसकी समृद्ध संस्कृति और गर्मजोशी से भरे लोगों से होती है। यह अपने शानदार आभूषणों और पोशाकों के लिए भी विख्यात है। घाटी में आभूषण न केवल उनके आतंरिक मूल्य और खूबसूरती के लिए पहने जाते हैं बल्कि उनके धार्मिक कारण भी होते हैं। इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण कश्मीरी पंडितों की विवाहिता महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला खूबसूरत सोने का आभूषण देज-होर है।  

आभूषण
कश्मीर में आभूषण सोने के होते हैं लेकिन कभी-कभी खूबसूरती बढ़ाने के लिए उनकी बनावट और डिजाइन में दूधिये पत्थर, रक्तमणि, नीलमणि, फिरोजा और सुलेमानी पत्थर भी जड़ दिए जाते हैं। हालांकि इनमें से अधिकांश रत्न क्षेत्र के बाहर से लाए जाते हैं लेकिन पन्ना, नीलमणि, सुलेमानी पत्थर और बिल्लौरी स्वदेशी हैं और जम्मू-कश्मीर राज्य के भीतर ही पाए जाते हैं।
कश्मीरी संगतराश अपने फन में बहुत माहिर होते हैं और उनकी कारीगरी की जटिलता और महीनी के लिए उन्हें प्रशंसित किया जाना चाहिए। कश्मीर की मनमोहक खूबसूरती इसकी सभी कलाओं और शिल्पों में अभिव्यक्त होती है। गहनों के डिजाइन विशिष्ट होते हैं और दुनिया के किसी भी हिस्से में इनकी आसानी से पहचान की जा सकती है। प्रकृति इसके लघु चित्र कला रूप की डिजाइन में दिखती है। बादाम, चिनार के पत्ते और मैना और बुलबुल जैसे पक्षी महत्वपूर्ण हैं।
कश्मीर में सुनार अपने काम को बेहद पसंद करता है और एक खूबसूरत चीज बनाने के लिए देर रात तक काम करता है। दिलचस्प बात यह है कि पंडितों और मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले ज्यादातर गहनों के रूप और आकार में काफी समानता होती है। कश्मीरी महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले कुछ प्रमुख आभूषण इस प्रकार हैं-
जिगनी और टीका ललाट पर पहने जाते हैं और आमतौर पर ये आकार में त्रिकोणीय, अर्द्ध-वक्राकार और वक्राकार होते हैं। ये सोने और चांदी से बने होते हैं और इनकी किनारी पर मोती और सोने की पत्तियां लटकती रहती हैं।
कान के गहनों के नाम अट्टा-हूर, कन-दूर, झुमका, देज-होर और कन-वजी होते हैं जिनमें फिरोजा जड़ा होता है और किनारी पर बॉल और सोने की पत्तियां लटकती रहती हैं। कन-वजी भी कान का एक गहना है जिनकी किनारी पर छोटे मोतियों के साथ विभिन्न रंगों के पत्थर जड़ें होते हैं। झुमका गेंद की आकार का कान में पहने जाने वाला एक गहना है।
जैसा कि पहले बताया जा चुका है, देज-होर विवाहिता कश्मीरी पंडित महिलाओं के लिए एक अपरिहार्य गहना है जो इसे शादी अर्थात 'सुहाग' की एक निशानी के रूप में हमेशा पहने रहती हैं। अट्टा-होर विवाहिता कश्मीरी पंडित महिलाओं के सर के दोनों तरफ कान में लटका रहता है और सर के ऊपर से जाने वाले सोने की चेन के साथ जुड़ा रहता है। कन-दूर कान में पहने जाने वाला एक अन्य गहना है जिसे ज्यादातर लड़कियां पहनती हैं। ये गहने सोने और चांदी के बने होते हैं इनमें लाल और हरे रत्न या मोती जड़े होते हैं।

कश्मीर की पारंपरिक पोशाक
कश्मीर की पारंपरिक पोशाक अपनी कशीदाकारी और पेचदार डिजाइनों के लिए जानी जाती है जो राज्य की संस्कृति और प्राकृतिक दृश्यों की समृद्धि को परिलक्षित करती है। कश्मीर के पोशाकों की समानता अरब, ईरान और तुर्किस्तान में देखी जाती है। ऐसा विश्वास है कि सुलतान सिकंदर के शासनकाल में सैय्यद अली हमदानी ने इसे प्रचलित किया। कश्मीर घाटी के कश्मीरी पंडितों ने भी इसे अपना लिया। इसमें शरीर का निचला हिस्सा फारसी मूल के 'सलवार' नामक चौड़े पैजामे से ढका रहता था जबकि ऊपरी हिस्से में पूरे बांह की कमीज पहनी जाती थी। इसके ऊपर एक छोटा अंगरखा कोट होता था जिसे सदरी कहते थे। बाहरी लबादे को चोगा कहते थे जो नीचे टखनों तक आता था इसकी एक लंबी, ढीली आस्तीन होती थी और एक कमरबंद होता था। सर की पोशाक एक छोटे कपड़े से ढका छोटी चुस्त टोपी से बनी होती थी। इसी से पगड़ी बनती थी। त्यौहार के मौके पर सिल्क पहना जाता था। धनी और समाज के समृद्ध वर्गों के बीच पोशाक का ऐसा ही प्रचलन व्याप्त था।
गरीब वर्गों के लिए पोशाक में मध्य युग के बाद से कोई परिवर्तन नहीं आया है। पुरुष अपने मुंडे हुए सरों पर एक खोपड़ी नुमा टोपी पहनते थे पर पगड़ी नहीं बांधते थे। वे अपने शरीर को फेरन नामक एक लंबे ढीले ऊनी वस्त्र से ढकते थे जो गर्दन से लेकर कमर तक खुला होता था, कमर के पास वे एक पेटी बांधते थे और यह टखनों तक जाता था। जूते पूलहरु नामक घास से बने होते थे। कुछ लोग खड़ांउ नामक लकड़ी के चप्पल पहनते थे। महिलाओं की पोशाके भी पुरुषों जैसे होती थी फर्क इतना ही था कि उनके सिरों पर बांधने का एक फीता होता था और उसके ऊपर एक दुपट्टा होता था जो सिर से कंधों तक फैला होता था। कश्मीरी महिलाओं के सिर की पोशाक को कासबा बोलते थे। कश्मीरी पंडित महिलाएं भी कासबा का उपयोग करती थी लेकिन वे इसे तरंगा बोलती थीं जो स्त्रियों के पहनने की टोपी होती थी और यह पीछे से एड़ी तक फैली होती थी।

आज के जमाने की पोशाके
वर्तमान में कश्मीर में पोशाकों में बहुत परिवर्तन आया है। अन्य कई संस्कृतियों और समाजों की तरह कश्मीर ने भी जीने की आधुनिक पश्चिमी शैली अपना ली है। इस घुसपैठ के बावजूद समाज के सभी वर्गों द्वारा खासकर जाड़ों और राज्य के विषम मौसम में ठंड से मुक्ति पाने के लिए फेरन अवश्य पहना जाता है। एक कश्मीरी आमतौर पर जाड़ों के दौरान एक मौटे ऊनी कपड़े से बने फेरन तथा गर्मियों के दौरान सूती कपड़ों से बने फेरन को पहनकर प्रसन्न और गौरवान्वित महसूस करता है। अब यह पोशाक दूसरे राज्यों में भी लोकप्रिय हो गया है। फेरन को यहां आने वाले यात्रियों के बीच बेशुमार लोकप्रियता मिल रही है जिसे हमारे फिल्म उद्योग की हाल की कई बॉलीवुड फिल्मों में जगह मिली है।
एक कश्मीरी अपनी जमीन की अनूठी विरासत और पहचान से जुड़कर बहुत गर्व का अनुभव करता है। कश्मीर से बाहर देश के अन्य क्षेत्रों में रहने वाले कश्मीरी पंडितों की    बहुसंख्यक आबादी अभी भी अपनी पारंपरिक पोशाक का उपयोग करना नहीं भूली है। उनमें से अधिकांश अभी भी खूबसूरत कश्मीरी आभूषण पहनते हैं। यहां यह अवश्य याद रखा जाना चाहिए कि सांस्कृतिक पहचान और पारंपरिक मूल्य शायद ही कभी मरते हैं। यह बात सभी पर लागू होती है।

(लेखक  पीआईबी जम्मू में मीडिया एवं सूचना अधिकारी हैं)

तस्वीर गूगल से साभार


फ़िरदौस ख़ान
बढ़ते बाज़ारवाद के दौर में उपभोक्ता संस्कृति तो देखने को मिल रही है, लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी है. आज हर व्यक्ति उपभोक्ता है, चाहे वह कोई वस्तु ख़रीद रहा हो या फिर किसी सेवा को प्राप्त कर रहा हो. दरअसल, मुना़फ़ाखोरी ने उपभोक्ताओं के लिए कई तरह की परेशानियां पैदा कर दी हैं. वस्तुओं में मिलावट और निम्न गुणवत्ता की वजह से जहां उन्हें परेशानी होती है, वहीं सेवाओं में व्यवधान या पर्याप्त सेवा न मिलने से भी उन्हें दिक्क़तों का सामना करना पड़ता है. हालांकि सरकार कहती है, जब आप पूरी क़ीमत देते हैं, तो कोई भी वस्तु वज़न में कम न लें. बाट सही है या नहीं, यह सुनिश्चित करने के लिए क़ानून है. यह स्लोगन सरकारी दफ्तरों में देखने को मिल जाएगा. सरकार ने उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए कई क़ानून बनाए हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद उपभोक्ताओं से पूरी क़ीमत वसूलने के बाद उन्हें सही वस्तुएं और वाजिब सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं. भारत में 24 दिसंबर राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए 24 दिसंबर, 1986 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 लागू किया गया. इसके अलावा 15 मार्च को देश में विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के तौर पर मनाया जाता है. भारत में इसकी शुरुआत 2000 से हुई.

ग़ौरतलब है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 में उत्पाद और सेवाएं शामिल हैं. उत्पाद वे होते हैं, जिनका निर्माण या उत्पादन किया जाता है और जिन्हें थोक विक्रेताओं या खुदरा व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं को बेचा जाता है. सेवाओं में परिवहन, टेलीफ़ोन, बिजली, निर्माण, बैंकिंग, बीमा, चिकित्सा-उपचार आदि शामिल हैं. आम तौर पर ये सेवाएं पेशेवर लोगों द्वारा प्रदान की जाती हैं, जैसे चिकित्सक, इंजीनियर, वास्तुकार, वकील आदि. इस अधिनियम के कई उद्देश्य हैं, जिनमें उपभोक्ताओं के हितों और अधिकारों की सुरक्षा, उपभोक्ता संरक्षण परिषदों एवं उपभोक्ता विवाद निपटान अभिकरणों की स्थापना शामिल है. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया कि उपभोक्ता कौन है और किन-किन सेवाओं को इस क़ानून के दायरे में लाया जा सकता है. इस अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक़, किसी भी वस्तु को क़ीमत देकर प्राप्त करने वाला या निर्धारित राशि का भुगतान कर किसी प्रकार की सेवा प्राप्त करने वाला व्यक्ति उपभोक्ता है. अगर उसे ख़रीदी गई वस्तु या सेवा में कोई कमी नज़र आती है तो वह ज़िला उपभोक्ता फ़ोरम की मदद ले सकता है. इस अधिनियम की धारा-2 (1) (डी) के अनुबंध (2) के मुताबिक़, उपभोक्ता का आशय उस व्यक्ति से है, जो किन्हीं सेवाओं को शुल्क की एवज में प्राप्त करता है. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 1997 के अपने एक फ़ैसले में कहा कि इस परिभाषा में वे व्यक्ति भी शामिल हो सकते हैं, जो इन सेवाओं से लाभान्वित हो रहे हों.

यह क़ानून उपभोक्ताओं के लिए एक राहत बनकर आया है. 1986 से पहले उपभोक्ताओं को दीवानी अदालतों के चक्कर लगाने पड़ते थे. इसमें समय के साथ-साथ धन भी ज़्यादा ख़र्च होता था. इसके अलावा उपभोक्ताओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता था. इस समस्या से निपटने और उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए संसद ने ज़िला स्तर, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर विवाद पारितोष अभिकरणों की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया. यह जम्मू-कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू है. जम्मू-कश्मीर ने इस संबंध में अपना अलग क़ानून बना रखा है. इस अधिनियम के तहत तीन स्तरों पर अभिकरणों की स्थापना की गई है, ज़िला स्तर पर ज़िला मंच, राज्य स्तर पर राज्य आयोग और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग. अब उपभोक्ताओं को वकील नियुक्त करने की ज़रूरत नहीं है. उन्हें अदालत की फ़ीस  भी नहीं देनी पड़ती. इन अभिकरणों द्वारा उपभोक्ता का परिवाद निपटाने की सेवा पूरी तरह निशुल्क है. इन तीनों अभिकरणों को दो प्रकार के अधिकार हासिल हैं. पहला धन संबंधी अधिकार और दूसरा क्षेत्रीय अधिकार. ज़िला मंच में 20 लाख रुपये तक के वाद लाए जा सकते हैं. राज्य आयोग में 20 लाख से एक करोड़ रुपये तक के मामलों का निपटारा किया जा सकता है, जबकि राष्ट्रीय आयोग में एक करोड़ रुपये से ज़्यादा के मामलों की शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. यह धन संबंधी अधिकार है. जिस ज़िले में विरोधी पक्ष अपना कारोबार चलाता है या उसका ब्रांच ऑफिस है या वहां कार्य कर रहा है तो वहां के मंच में शिकायती पत्र दिया जा सकता है. इसे क्षेत्रीय अधिकार कहते हैं.

उपभोक्ता को वस्तु और सेवा के बारे में एक शिकायत देनी होती है, जो लिखित रूप में किसी भी अभिकरण में दी जा सकती है. मान लीजिए, ज़िला मंच को शिकायत दी गई. शिकायत पत्र देने के 21 दिनों के भीतर ज़िला मंच विरोधी पक्ष को नोटिस जारी करेगा कि वह 30 दिनों में अपना पक्ष रखे. उसे 15 दिन अतिरिक्त दिए जा सकते हैं. ज़िला मंच वस्तु का नमूना प्रयोगशाला में भेजता है. इसकी फ़ीस उपभोक्ता से ली जाती है. प्रयोगशाला 45 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट भेजेगी. अगर रिपोर्ट में वस्तु की गुणवत्ता में कमी साबित हो गई, तो ज़िला मंच विरोधी पक्ष को आदेश देगा कि वह माल की त्रुटि दूर करे, वस्तु को बदले या क़ीमत वापस करे या नुक़सान की भरपाई करे, अनुचित व्यापार बंद करे और शिकायतकर्ता को पर्याप्त ख़र्च दे आदि. अगर शिकायतकर्ता ज़िला मंच के फ़ैसले से ख़ुश नहीं है तो वह अपील के लिए निर्धारित शर्तें पूरी करके राज्य आयोग और राज्य आयोग के फ़ैसले के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय आयोग में अपील कर सकता है. इन तीनों ही अभिकरणों में दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है. मंच या आयोग का आदेश न मानने पर दोषी को एक माह से लेकर तीन साल की क़ैद या 10 हज़ार रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों सज़ाएं हो सकती हैं.

कुछ ही बरसों में इस क़ानून ने उपभोक्ताओं की समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण किरदार निभाया. इसके ज़रिये लोगों को शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने का साधन मिल गया. इसमें 1989, 1993 और 2002 में संशोधन किए गए, जिन्हें 15 मार्च, 2003 को लागू किया गया. संशोधनों में राष्ट्रीय आयोग और राज्यों के आयोगों की पीठ का सृजन, सर्किट पीठ का आयोजन, शिकायतों की प्रविष्टि, सूचनाएं जारी करना, शिकायतों के निपटान के लिए समय सीमा का निर्धारण, भूमि राजस्व के लिए बक़ाया राशियों के समान प्रमाणपत्र मामलों के माध्यम से निपटान अभिकरण द्वारा मुआवज़े की वसूली का आदेश दिया जाना, निपटान अभिकरण द्वारा अंतरिम आदेश जारी करने का प्रावधान, ज़िला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद की स्थापना, ज़िला स्तर पर निपटान अभिकरण के संदर्भ में दंडात्मक न्याय क्षेत्र में संशोधन और नक़ली सामान/निम्न स्तर की सेवाओं के समावेश को अनुचित व्यापार प्रथाओं के रूप में लेना आदि शामिल हैं. उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2002 के बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग ने उपभोक्ता संरक्षण विनियम-2005 तैयार किया.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ताओं को अधिकार दिया है कि वे अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाएं. इसी क़ानून का नतीजा है कि अब उपभोक्ता जागरूक हो रहे हैं. इस क़ानून से पहले उपभोक्ता बड़ी कंपनियों के ख़िलाफ़ बोलने से गुरेज़ करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. मिसाल के तौर पर एक उपभोक्ता ने चंडीगढ़ से कुरुक्षेत्र फ़ोन शिफ्ट न होने पर रिलायंस इंडिया मोबाइल लिमिटेड के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई और उसे इसमें कामयाबी मिली. इस लापरवाही के लिए उपभोक्ता अदालत ने रिलायंस पर 1.5 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया. इसी तरह एक उपभोक्ता ने रेलवे के एक कर्मचारी द्वारा उत्पीड़ित किए जाने पर भारतीय रेल के ख़िलाफ़ उपभोक्ता अदालत में मामला दर्ज करा दिया. नतीजतन, उपभोक्ता अदालत ने रेलवे पर 25 हज़ार रुपये का जुर्माना लगा दिया. बीते जून माह में दिल्ली स्थित राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने ओडिसा के बेलपहा़ड के पशु आहार विके्रता राजेश अग्रवाल पर एक लाख 20 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया. मामले के मुताबिक़, ओडिसा के बेलपहा़ड के पशुपालक राम नरेश यादव ने अगस्त 2004 में राजेश की दुकान से पशु आहार ख़रीदा था. इसे खाने के कुछ घंटे बाद उसकी एक भैंस, एक गाय और दो बछड़ियों ने दम तो़ड़ दिया. इसके अलावा बेल पहाड़ के ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो की एक गाय की भी यह पशु आहार खाने से मौत हो गई. पीड़ितों द्वारा मामले की सूचना थाने में देने के बाद ब्रजराज नगर के पशु चिकित्सक लोचन जेना एवं बेलपहाड़ के पशु चिकित्सक प्रफुल्ल नायक ने भी पोस्टमार्टम के उपरांत इस बात की पुष्टि की कि पशुओं की मौत विषैला दाना खाने से हुई है. राम नरेश द्वारा क्षतिपूर्ति मांगने पर व्यवसायी ने कुछ भी देने से इंकार कर दिया. इस पर राम नरेश ने ज़िला उपभोक्ता अदालत की शरण ली और अदालत ने पशु आहार विक्रेता को दोषी क़रार दिया. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ व्यापारी राजेश ने राज्य उपभोक्ता अदालत और बाद में 2007 में राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में अपील दायर की. राष्ट्रीय अदालत के जज जे एम मल्लिक और सुरेश चंद्रा की खंडपीठ ने राज्य उपभोक्ता अदालत के फ़ैसले को सही मानते हुए व्यापारी को एक लाख बीस हज़ार रुपये का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ता समूहों को प्रोत्साहित करने का काम किया है. इस क़ानून से पहले जहां देश में सिर्फ़ 60 उपभोक्ता समूह थे, वहीं अब उनकी तादाद हज़ारों में है. उन उपभोक्ता समूहों ने स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ताओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई है. सरकार ने उपभोक्ता समूहों को आर्थिक सहयोग मुहैया कराने के साथ-साथ अन्य कई तरह की सुविधाएं भी दी हैं. टोल फ्री राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन उपभोक्ताओं के लिए वरदान बनी है. देश भर के उपभोक्ता टोल फ्री नंबर 1800-11-14000 डायल कर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए परामर्श ले सकते हैं. उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई जागो, ग्राहक जागो जैसी मुहिम से भी आम लोगों को उनके अधिकारों के बारे में पता चला है.

केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने माना है कि राज्य सरकारें उपभोक्ता मंच और आयोग को सुविधा संपन्न बनाने के लिए केंद्र द्वारा जारी बजट का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं. इस बजट का समुचित उपयोग होना चाहिए. उनका यह भी कहना है कि उपभोक्ताओं को मालूम होना चाहिए कि वे जो खा रहे हैं, उसमें क्या है, उसकी गुणवत्ता क्या है, उसकी मात्रा और शुद्धता कितनी है? उत्पादकों को भी चाहिए कि वे अपने उत्पाद के इस्तेमाल से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की भी विस्तृत जानकारी दें. बहरहाल, उपभोक्ताओं को ख़रीदारी करते वक़्त सावधानी बरतनी चाहिए. उपभोक्ताओं को विभिन्न आधारभूत पहलुओं जैसे अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी), सोने के आभूषणों की हॉलमार्किंग, उत्पादों पर भारतीय मानक संस्थान (आईएसआई) का निशान और समाप्ति की तारीख़ के बारे में जानकारी होनी चाहिए. इसके बावजूद अगर उनके साथ धोखा होता है तो उसके ख़िलाफ़ शिकायत करने का अधिकार क़ानून ने उन्हें दिया है, जिसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

उपभोक्ताओं की परेशानियां

  • सेहत के लिए नुक़सानदेह पदार्थ मिलाकर व्यापारियों द्वारा खाद्य पदार्थों में मिलावट करना या कुछ ऐसे पदार्थ निकाल लेना, जिनके कम होने से पदार्थ की गुणवत्ता पर विपरीत असर पड़ता है, जैसे दूध से क्रीम निकाल कर बेचना.
  • टेलीविजन और पत्र-पत्रिकाओं में गुमराह करने वाले विज्ञापनों के ज़रिये वस्तुओं तथा सेवाओं का ग्राहकों की मांग को प्रभावित करना.
  • वस्तुओं की पैकिंग पर दी गई जानकारी से अलग सामग्री पैकेट के भीतर रखना.
  • बिक्री के बाद सेवाओं को अनुचित रूप से देना.
  • दोषयुक्त वस्तुओं की आपूर्ति करना.
  • क़ीमत में छुपे हुए तथ्य शामिल होना.
  • उत्पाद पर ग़लत या छुपी हुई दरें लिखना.
  • वस्तुओं के वज़न और मापन में झूठे या निम्न स्तर के साधन इस्तेमाल करना.
  • थोक मात्रा में आपूर्ति करने पर वस्तुओं की गुणवत्ता में गिरावट आना.
  • अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) का ग़लत तौर पर निर्धारण करना.
  • एमआरपी से ज़्यादा क़ीमत पर बेचना.
  • दवाओं आदि जैसे अनिवार्य उत्पादों की अनाधिकृत बिक्री उनकी समापन तिथि के बाद करना.
  • कमज़ोर उपभोक्ताएं सेवाएं, जिसके कारण उपभोक्ता को परेशानी हो.
  • बिक्री और सेवाओं की शर्तों और निबंधनों का पालन न करना.
  • उत्पाद के बारे में झूठी या अधूरी जानकारी देना.
  • गारंटी या वारंटी आदि को पूरा न करना.


उपभोक्ताओं के अधिकार

  • जीवन एवं संपत्ति के लिए हानिकारक सामान और सेवाओं के विपणन के ख़िलाफ़ सुरक्षा का अधिकार.
  • सामान अथवा सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, स्तर और मूल्य, जैसा भी मामला हो, के बारे में जानकारी का अधिकार, ताकि उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापार पद्धतियों से बचाया जा सके.
  • जहां तक संभव हो उचित मूल्यों पर विभिन्न प्रकार के सामान तथा सेवाओं तक पहुंच का आश्वासन.
  • उपभोक्ताओं के हितों पर विचार करने के लिए बनाए गए विभिन्न मंचों पर प्रतिनिधित्व का अधिकार.
  • अनुचित व्यापार पद्धतियों या उपभोक्ताओं के शोषण के विरुद्ध निपटान का अधिकार.
  • सूचना संपन्न उपभोक्ता बनने के लिए ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अधिकार.
  • अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाने का अधिकार.


माप-तोल के नियम

  • हर बाट पर निरीक्षक की मुहर होनी चाहिए.
  • एक साल की अवधि में मुहर का सत्यापन ज़रूरी है.
  • पत्थर, धातुओं आदि के टुकड़ों का बाट के तौर पर इस्तेमाल नहीं हो सकता.
  • फेरी वालों के अलावा किसी अन्य को तराज़ू हाथ में पकड़ कर तोलने की अनुमति नहीं है.
  • तराज़ू एक हुक या छड़ की सहायता से लटका होना चाहिए.
  • लड़की और गोल डंडी की तराज़ू का इस्तेमाल दंडनीय है.
  • कपड़े मापने के मीटर के दोनों सिरों पर मुहर होनी चाहिए.
  • तेल एवं दूध आदि के मापों के नीचे तल्ला लटका हुआ नहीं होना चाहिए.
  • मिठाई, गिरीदार वस्तुओं एवं मसालों आदि की तुलाई में डिब्बे का वज़न शामिल नहीं किया जा सकता.
  • पैकिंग वस्तुओं पर निर्माता का नाम, पता, वस्तु की शुद्ध तोल एवं क़ीमत कर सहित अंकित हो. साथ ही पैकिंग का साल और महीना लिखा होना चाहिए.
  • पैकिंग वस्तुओं पर मूल्य का स्टीकर नहीं होना चाहिए.


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