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नई दिल्ली. दक्षिण-पश्चिम मॉनसून अगले चार-पांच दिन में केरल पहुंच जाएगा. मौसम विभाग ने गुरुवार को मॉनसून के दूसरे चरण का पूर्वानुमान जारी करते हुए बताया कि हवा का प्रवाह अब तक अनुकूल नहीं होने के कारण इस साल मॉनसून में देरी हुई है, लेकिन अब प्रवाह अनुकूल बनता दिख रहा है और अगले चार-पांच दिन में मॉनसून के केरल के तट पर आने की उम्मीद है.
आम तौर पर केरल में मानसून 1 जून को आ जाता है. भारतीय मौसम विभाग के महानिदेशक डॉ. एलएस राठौर ने दूसरे चरण का पूर्वानुमान जारी करते हुए बताया कि इस बार ला-नीना प्रभाव के कारण मॉनसून के दौरान बारिश दीर्घावधि औसत से अधिक होगी. इसके औसत का 106 प्रतिशत रहने का अनुमान है. उत्तर-पूर्व में बारिश औसत से कम (94 प्रतिशत) होगी. उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में यह औसत से अधिक (108 प्रतिशत) रहेगी. वहीं, दक्षिणी प्रायद्वीप तथा मध्य भारत में इस बार अतिवृष्टि (113 प्रतिशत) होगी.
उन्होंने बताया कि एक बार केरल तट पर आने के बाद मॉनसून तेज़ई से आगे बढ़ेगा. केंद्रीय तथा पूर्वी भारत में इसके समय से पहले पहुंचने की उम्मीद है. जुलाई में देश भर में मॉनसूनी बारिश दीर्घावधि औसत का 107 प्रतिशत और अगस्त में 104 प्रतिशत रहने का अनुमान है. उन्होंने बताया कि पिछले साल दिसंबर के बाद से प्रशांत महासागर में अल-नीनो प्रभाव कमजोर पड़ने लगा था. अब यह पूरी तरह ख़त्म हो चुका है.
वहीं, मानसून के दौरान बाद में ला-नीना प्रभाव जोर पकड़ेगा. इससे ज्यादा बारिश होगी. अल-नीनो के कारण पिछले दो साल के दौरान मॉनसून में औसत से कम बारिश हुई है. साल1901 से 2015 तक कुल 24 बार मॉनसून के दौरान ला-नीना प्रभाव रहा है.
इसमें 16 साल सामान्य से अधिक तथा सात साल सामान्य बारिश हुई है. सिर्फ एक साल ऐसा रहा जब ला-नीना के बावजूद बारिश सामान्य से कम हुई है. पिछले 10 साल के दौरान 2007 और 2010 में ला-नीना प्रभाव था और दोनों वर्ष क्रमश: 105.7 प्रतिशत तथा 102 प्रतिशत बारिश हुई थी.केरल समेत लगभग पूरे भारत में मानसून पूर्व बारिश शुरू हो गई है. दक्षिण बंगाल की खाड़ी तथा पूर्व-मध्य बंगाल की खाड़ी में अगले 48 घंटे में मॉनसूनी बारिश शुरू हो जाएगी.
इससे पहले 12 मई को जारी पहले चरण के पूर्वानुमान में कहा गया था कि मॉनसून 7 जून को केरल पहुंचेगा, लेकिन पूर्वानुमान में चार दिन की रियायत रखी गई थी. उस समय भी मॉनसूनी बारिश के दीर्घावधि औसत का 106 प्रतिशत ही रहने का अनुमान जाहिर किया गया था. मॉनसून के आने से गर्मी से राहत मिल सकेगी.


कल्पना पालकीवाला
विश्व मौसम संगठन प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को अपने 189 सदस्यों एवं वैश्विक मौसम समुदाय के साथ मिलकर विश्व मौसम दिवस मनाता है । अंतर्सष्ट्रीय मौसम संगठन की स्थापना वर्ष 1873 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में आयोजित पहली अंतरराष्ट्रीय मौसम कांग्रेस में की गयी थी । इस संगठन का उद्देश्य मौसम स्टेशन नेटवर्क की स्थापना करना था । यह नेटवर्क टेलीग्राफ लाइन से जोड़ा गया और जहाजरानी सेवा सुरक्षा के लिए इन्होनें मौसम संबंधी जानकारियां उपलब्ध करायीं ।
23 मार्च वर्ष 1950 में इसका नाम बदल कर विश्व मौसम संगठन कर दिया गया और अगले वर्ष से इसने संयुक्त राष्ट्र की मौसम विशेषज्ञ व आपरेशनल हाइड्रोलॉजी तथा   भूभौतिक  विज्ञानों से संबंधित एजेंसी के रूप में कामकाज प्रारंभ कर दिया ।

विश्व मौसम संगठन लोगों की सुरक्षा व कल्याण तथा खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है । इस वर्ष इसका नारा है जलवायु आपके लिए।

जलवायु के दो भौतिक और सूचनात्मक पक्ष हैं । भौतिक पक्ष में प्राकृतिक साधनों की उपलब्धता जैसे नवीकरणीय ऊर्जा आदि चीजें शामिल हैं । सूचनात्मक पक्ष में विशेषकर सामाजिक आर्थिक निर्णय की प्रक्रिया शामिल है । विस्तृत रूप से जलवायु एक ऐसा संसाधन है जिसका अन्य प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन पर गहरा असर होता है खासकर कृषि उत्पादन, जल प्रबंधन, स्वास्थ्य और कई अन्य महत्वपूर्ण प्रयोगों में इसका व्यापक प्रभाव है ।

हाल के वर्षों में विश्व मौसम दिवस के नारे इस प्रकार रहे हैं- वर्ष 2009 में वेदर, क्लाइमेट. एडं द एयर वी ब्रीथ; वर्ष 2008 में आब्जरविंग आवर प्लानेट फार ए वेटर पऊयूचर; वर्ष 2007 में पोलर मीटरोलाजी: अंडरस्टैंडिंग ग्लोबल इम्पैक्टस; वर्ष 2006 में प्रिवेंटिग एडं मिटीगेटिंग नेचुरल डिजास्टर;  वर्ष 2005 में वेदर, क्लाइमेट वाटर एडं सस्टेनिबल डेवलपमेंट; वर्ष 2004 में वेदर, क्लाइमेट वाटर इन द इन्फोरमेशन एज तथा वर्ष 2003 में आवर पऊयूचर क्लाइमेट ।

विश्व मौसम दिवस को मौसम निगरानी केंद्रों की स्थापना के लिए वैश्विक सहयोग को बढावा देने,  हाइड्रोलॉजीकल व जियोफिजीकल निगरानी केंद्रों की स्थापना इन केंद्रो के पुनर्निमाण एवं रखरखाव तथा शोध के लिए उपकरण मुहैया कराने, मौसम में तेजी से आ रहे बदलावों और संबंधित सूचनाओ के लिए तंत्र की स्थापना एवं रखरखाव तथा मौसम व संबंधित निगरानी के लिए मानकीकरण व आंकड़ो तथा निगरानी से जुडी सूचनाओं के एकरूप आंकडों के प्रकाशन, मौसम की सूचनाओं के प्रयोग को जहाजरानी, विमानन, जल संबंधी समस्यायों, कृषि व अन्य मानवीय  क्रियाकलापों में  एवं इस क्षेत्र में शोध एवं प्रशिक्षण को बढावा देने आदि के रूप मे मनाया जाता है । 

इसके अलावा इस दिवस को लोगों की जलवायु के बदलते स्वभाव के बारे में समझ का विस्तार करना,  पर्यावरण पर मौसम के प्रभाव और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के निपटारे के लिए उपाय सुझाने के रूप में भी मनाया जाता है। विश्व मौसम संगठन के क्रियाकलापों को जलवायु के क्षेत्र में आज महत्वपूर्ण् स्थान प्राप्त है । इस संगठन को मानवीय सुरक्षा को बढावा देने के अलावा सभी देशों के आर्थिक लाभ को बढाने के रूप में भी जाना जाता है ।


स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. अगले पांच दिनों के दौरान हिमालय की तराइयों और पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ पश्चिमी किनारे पर व्यापक वर्षा हो सकती है तथा मध्य और पूर्वी भारत में काफी व्यापक वर्षा हो सकती है।

मौसम पूर्वानुमानों की प्रमुख विशेषताओं में सलाह दी जाती है कि अगले तीन दिनों के दौरान पूर्वोत्तर के राज्यों और उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल तथा सिक्किम में काफी व्यापक  वर्षा  गरज के साथ वर्षा हो सकती है तथा इस अवधि के दौरान पश्चिमी किनारे पर व्यापक वर्षा  गरज के साथ वर्षा हो सकती है। मध्य और उत्तर  भारत में धीमी वर्षा हो सकती है।

एक चेतावनी में भारतीय मौसम विभाग ने  कहा है कि  अगले 48 घंटों के दौरान हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड, हरियाणा (दिल्ली तथा चंडीगढ सहित), पूर्वी राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल और सिक्किम, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, कोंकण तथा गोवा, तटीय कर्नाटक और केरल में अलग-अलग क्षेत्रों में बहुत भारी वर्षा हो सकती है।


स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली.देश के अनेक भागों में आज से वर्षा की गतिविधियों में तेजी होने की संभावना है। भारतीय मौसम विभाग कहना है कि मानूसन की गतिविधि इस महीने के पहले सप्ताह की तुलना में दूसरे सप्ताह के दौरान कुल मिलाकर धीमी रही है। इसका मुख्य कारण मानसून दबाव की धुरी का औसत समुद्र तल पर अपनी सामान्य स्थिति के उत्तर में बढ़ना है और बंगाल की खाड़ी पर वर्षा वाले बादलों का अनुपस्थित होना है। हालांकि दबाव का पूर्वी छोर ऊपरी हवा के चक्रवाती प्रसार के सहयोग से और रोजमर्रा की घटा बढ़ी से लगभग सामान्य स्थिति में बना रहा। इससे मध्यवर्ती और निकटवर्ती प्रायद्वीपीय भारत के विभिन्न भागों में व्यापक वर्षा हुई। पहले सप्ताह के दौरान  36 मौसम वैज्ञानिक उप डिवीजनों में से  8 डिवीजनों में जरूरत से ज्यादा वर्षा हुई। चार में सामान्य वर्षा हुई, 19 में कम वर्षा हुई और पांच उप डिवीजनों में बिल्कुल वर्षा नहीं हुई। बिहार, पूर्वी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, विदर्भ, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल और सिक्किम में पहले सप्ताह के दौरान अच्छी वर्षा हुई।
 
     कुल मिलाकर 15 जुलाई तक इस वर्ष के मानसून के दौरान संचयी वर्षा एलपीए से 14 प्रतिशत कम रहा है।  कुल 36 मौसम वैज्ञानिक उप डिविजनों में से 6 डिवीजनों में सामान्य से ज्यादा, 16 में सामान्य और 14 उप डिवीजनों में कम वर्षा हुई है।

संख्यात्मक मौसमी भविष्यवाणी के मॉडलों से मानसून दबाव के कल से अपनी सामान्य स्थिति से उत्तर की ओर बढने क़ा पता चलता है। भविष्यवाणी से यह भी पता चलता है कि उत्तर प्रदेश के ऊपर निचले क्षोभमंडलीय स्तरों में  कल से चक्रवाती संचरण के बनने के संकेत हैं। पश्चिमी बाधा आज से उत्तर पश्चिमी भारत पर असर डाल सकती है। तथापि संख्यात्मक मौसमी भविष्यवाणी के मॉडलों से अगले 5 से 7 दिन के दौरान मानूसन के दबाव के बनने के कोई संकेत नहीं हैं।

अरब सागर पर संकट भूमध्यवर्ती बहाव के मजबूत होने और बंगाल की खाड़ी पर मानसून दबाव के कम होने से पूर्वी, मध्यवर्ती और प्रायद्वीपीय भारत पर वर्षा की गतिविधि बढ़ने क़ी संभावना है।

स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली.
पूर्वी राजस्थान और दिल्ली तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं उत्तरी मध्य प्रदेश के कुछ भागों में लू का प्रकोप जारी है। मौसम विभाग के अनुसार उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक तापमान आगरा में 46.5 सेल्सियस रहा।

ताजा पश्चिमी विक्षोभ से कल पश्चिमी हिमालय क्षेत्र के प्रभावित होने का अनुमान है। 26 जून तक देश के दक्षिणी भागों और उप-हिमालयी, पश्चिमी बंगाल और सिक्किम में व्यापक वर्षा हो सकती है। कोंकण एवं गोवा, तटीय कर्नाटक, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, केरल, लक्षद्वीप में व्यापक वर्षा या तेज बौछार पड़ सकती हैं। अगले चौबीस घंटों के दौरान आंध्र प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, बिहार और गंगा के मैदान (पश्चिम बंगाल) में छिटपुट वर्षा की संभावना है।

जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड में अगले 24 घंटों में छिटपुट  वर्षा या तेज बौछार पड़ने का अनुमान है।

स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली.
भारतीय मौसम विभाग अपने पर्यवेक्षण तंत्र का आधुनिकीकरण कर रहा है। इसके लिए वह पूरे देश में अपने पुराने तथा पांरपरिक रेडारों के स्थान पर चरणबध्द तरीके से एस-बैंड वाले डॉप्लर मौसम रेडारों को लगा रहा है। यह रेडार दिल्ली तथा इसके आसपास के इलाके में ख़राब मौसम की जानकरी देने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभएगा।
डॉप्लर रेडार को देशभर में 15 स्थानों पर लगाया जा रहा है। ये स्थान दिल्ली, मुम्बई, पुणे, गोवा, पटियाला, मोहनबाड़ी, डिब्रुगढ़, लखनऊ, पारादीप, करैकल, कोच्चि, भोपाल, नागपुर और अगरतला हैं।

डॉप्लर मौसम रेडार  पारंपरिक रेडारों से अधिक लाभदायक है, जैसे
  • पारंपरिक रेडार केवल परावर्तन द्वारा ही सूचना देता है जबकि डॉप्लर मौसम रेडार परावर्तन के अतिरिक्त वैलोसिटी तथा स्पैक्ट्रल विड्थ पर सूचनाएं देता है।
  • मौसम, जल तथा उड्डयन संबंधी विभिन्न आंकडे जो डॉप्लर रेडार द्वारा तैयार किये गये है वे तूफानों के केंद्र, उसकी गति, स्थिति और भविष्य में उसके रास्ते तथा विमानों एवं जहाजों की आवाजाही के सुरक्षित मार्ग के बारे में अनुमान लगाने, में काफी उपयोगी हैं।
  • डॉप्लर मौसम रेडार मौसम की सटीक जानकारी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • डॉप्लर मौसम रेडार द्वारा किये गये वेलोसिटी तथा परावर्तन के डिजीटल आंकडे अंकीय मौसम पूर्वानुमान लगाने में उपयोगी है।

स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. देश में इस साल मानसून खुशगवार रहेगा और लोग रिमझिम बारिश ख़ूब लुत्फ़ उठा सकेंगे. मौसम विभाग के मुताबिक़  इस साल मानसून सामान्य रहने का अनुमान है.  

मौसम विभाग का कहना है कि जून से सितंबर के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून दीर्घकालिक औसत का 98 फ़ीसदी  रहने का अनुमान है.  हालांकि विभाग ने पिछले साल भी सामान्य मानसून की ऐलान किया.  पिछले साल 37 बरसों  के दौरान सबसे कम बारिश हुई थी. वैसे दक्षिण-पश्चिमी मानसून का दीर्घकालिक औसत 89 सेंटीमीटर माना जाता है.

भारतीय मौसम विभाग ने जून से सितम्बर, 2010 के बीच देश में दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा के सामान्य रहने का अनुमान लगाया है। 

      दीर्घावधि अनुपात में मानसून की वर्षा 98 प्रतिशत होने का अनुमान है। इसमें 5 प्रतिशत ज्यादा या कम हो सकता है।  देश में 1941 से 1990 के बीच मानसून की औसत वर्षा 89 सेमी रही है। मौसम विभाग वर्षा के लिए दूसरे स्तर के अनुमान पर अद्यतन सूचना जून, 2010 में जारी करेगा। इसके अलावा भारत के चार भौगोलिक क्षेत्रों में वर्षा का अनुमान जुलाई और अगस्त  तथा जून-सितम्बर में भी जारी की जाएगी। 

      भूमध्यवर्ती प्रशांत के ऊपर अल-नीनो परिस्थितियां मध्य जून से अक्टूबर, 2009 के दौरान कमजोर रही थी, लेकिन मध्य अक्तूबर से मजबूत होते हुए दिसम्बर के तीसरे सप्ताह में चरम पर पहुंच गईं थीं, लेकिन दिसम्बर के आखिर में अल-नीनों परिस्थितियां कमजोर पड़ना शुरू हो गईं थीं। हालांकि वर्तमान अनुमान के अनुसार जुलाई-अगस्त, 2010 तक अल-नीनो परिस्थितियों के कमजोर पड़ने के संकेत हैं।

 
देश में पड़ रही भीषण गर्मी दक्षिण-पश्चिमी मानसून की सक्रियता को बढ़ाने वाली है.  96  से 104 फ़ीसदी बारिश आती है, जबकि 104 से 110 फ़ीसदी सामान्य से ज्यादा और औसतन 90 प्रतिशत से कम हो तो यह सूखे की स्थिति मानी जाती है. फिलहाल मौसम विभाग की घोषणा से किसानों के चेहरे खिल उठे हैं, क्योंकि पिछले साल सूखे की वजह से किसानों को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ा था. 

स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली.  गर्मी ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं. दिल्ली सहित समूचे उत्तर भारत में गरमी का क़हर बढ़ गया है. लू के थपेड़ों ने लोगों का बाहर निकलना दूभर कर दिया. राजधानी दिल्ली में गर्मी ने पिछले 52 साल का रिकार्ड तोड़ दिया. दिल्ली में शनिवार को अधिकतम तापमान के 43.7 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया. 

मौसम विभाग के मुताबिक़ शनिवार का अधिकतम तापमान पिछले तीस साल में 17 अप्रेल का सर्वाधिक तापमान है. यह सामान्य से आठ डिग्री अधिक है. पिछले साल 17 अप्रैल  को अधिकतम तापमान 38 डिग्री था. अगले 24 घंटे के दौरान अधिकतम तापमान के 44 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाने की संभावना है. 

विभाग का कहना है कि अगले 24 घंटे के दौरान भी गर्मी अपने पूरे वेग पर रहेगी.मौसम साफ और बारिश की संभावना नहीं है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने लोगों को लू से बचने के लिए सर ढककर और पानी पीकर ही बाहर जाने की सलाह दी है.

स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. उत्तर भारत में गर्मी ने अपना जलवा दिखाना शुरू कर दिया है. दोपहरें बहुत गर्म हो गई हैं. हालांकि सुबह और शामें कुछ सुहानी हैं. गर्मी के बढ़ते ही मौसमी फल, शर्बत और आइस क्रीम की बिक्री बढ़ गई है. कूलर और पंखों की बिक्री भी बढ़ गई है.

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के मुताबिक़ इस सप्ताह भी तपिश बरकरार रहेगी. राजधानी में आज तड़के न्यूनतम तापमान औसत से पांच डिग्री सेल्सियस अधिक यानी 22 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि अधिकतम तापमान 38 डिग्री सेल्सियस रहने की संभावना है. कल न्यूनतम तापमान 22.3 डिग्री और अधिकतम तापमान 37.5 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था.

दिलीप घोष
शेष विश्व की तरह भारत खासकर देश के मौसमविज्ञानी भी 23 मार्च, 2010 को विश्व मौसम दिवस मना रहे हैं। सन् 1950 में आज के दिन संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई के रूप में विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) की स्थापना हुई थी और जिनेवा में इसका मुख्यालय खोला गया था। संगठन की स्थापना का उद्देश्य मानव के दुखदर्द को कम करना और संपोषणीय विकास को बढावा देना है। इस वर्ष विश्व मौसम दिवस का ध्येयवाक्य मानवजाति की सुरक्षा और कल्याण के लिए 60 वर्षों से सेवा में है।

पहले के विपरीत आज मौसम विज्ञान में केवल मौसम संबंधी विधा शामिल नहीं है बल्कि इसमें पूरा भू-विज्ञान है। इसका इस्तेमाल बाढ, सूखा और भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदा का अनुमान लगाने के लिए किया जा रहा है। इसका उपयोग नाविकों, समुद्री जहाजों और उन लोगों द्वारा भी किया जा रहा है जो सड़क एवं विमान यातायात का प्रबंधन संभालते हैं। ये सारी बातें मौसम पर्यवेक्षण टावरों, मौसम गुब्बारों, रडारों, कृत्रिम उपग्रहों, उच्च क्षमता वाले कंप्यूटरों और भिन्न-भिन्न अंकगणितीय मॉडलों से भी संभव हो पायी हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि महान मौसम विज्ञानियों को पैदा करने वाला भारत वर्तमान में भी मौसम विज्ञान के विकास में अहम योगदान दे रहा है।

यह सुविदित है कि भारतीय उपग्रहों के मौसम संबंधी आंकडें कई देश इस्तेमाल कर रहे हैं। अगस्त, 1983 , जब इनसैट श्रृंखला का पहला उपग्रह इनसैट-1बी प्रक्षेपित किया गया था, के बाद अबतक भारत ने अंतरिक्ष में मौसम पर्यवेक्षण के लिए 10 इनसैट उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं। केवल इनसैट-1ए का प्रक्षेपण विफल रहा था। बाद में सितंबर, 2002 में इसरो ने समर्पित मौसम उपग्रह कल्पना-1 भूस्थैतिक कक्षा में भेजा। इसके अलावा भारत ने 10 सुदूर संवेदी उपग्रह भी प्रक्षेपित किए हैं जिनमें एक हाल का ओसियनसैट 2 भी है। यह उपग्रह पिछले वर्ष 23 सितंबर को बंगाल की खाड़ी में स्थित श्रीहरिकोटा में इसरो के प्रक्षेपण केंद्र से अलग अलग देशों के छह अन्य उपग्रहों के साथ प्रक्षेपित किया गया था। ओसियनसैट की अवधि पांच साल तय की गयी है। यह उपग्रह अंतरिक्ष यान पीएसएलवी के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजा गया था। ओसियनसैट मछली की बहुलता वाले क्षेत्रों की पहचान और समुद्र की दशा के अनुमान और मौसम अनुमान के जरिए मछुआरों की मदद करता है तथा तटीय क्षेत्र के अध्ययन और जलवायु अध्ययन में अहम भूमिका भी निभाता है। इस उपग्रह के आंकड़े तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और केरल में स्थानीय भाषाओं में मत्स्य केंद्रों पर उपलब्ध कराए जाते हैं। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक डॉ. के राधाकृष्णन कहते हैं, इन तीनों राज्यों में मछली पकड़ने वाली 700 नौकाओं पर किए गए अध्ययन से पता चलता है कि ओसियनसैट के आंकडों ने मछलियों की बहुलता वाले स्थान का पता लगाकर उनके ईंधन और समय की बचत की है। उन्होंने कहा, न्न औसतन एक नौका पर सालभर में एक से छह लाख रूपए की बचत हुई। न्न

मौसम पर्यवेक्षण के लिए अंतरिक्ष में बड़ी संख्या में उपग्रह तैनात करने के अलावा भारतीय वैज्ञानिक मौसम और जलविज्ञान अध्ययन के लिए 1981 से ही अंटार्कटिका पर जाते रहे हैं। सागरीय प्रक्रियाओं को समझने के लिए और उससे प्राप्त अनुभवों का हिंद महासागर क्षेत्र के लोगों तक लाभ पहुंचाने के लिए भारत ने वैश्विक समुद्री पर्यवेक्षण तंत्र (आईओजीओओएस) के हिंद महासागर अवयव की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिलहाल वह हिंद महासागर पर एक अंतराष्ट्रीय परियोजना के साथ भी तालमेल स्थापित कर रहा है। इस परियोजना के तहत तापमान का नियतकालिक खांका तैयार किया जाएगा और महासागर में 2000 मीटर की गहराई तक लवणता का अध्ययन किया जाएगा ताकि यह पता चल सके कि ऊपरी समुद्र जलवायु परिवर्तन को कैसे प्रभावित करता है। इस परियोजना का महत्व इस बात में है कि हालांकि सागर जलवायु परिवर्तन में अहम भूमिका निभाता है लेकिन सागर और वायुमंडल के बीच परस्पर संबंध खासकर तापमान और भूखंड के संदर्भ में, अब भी अच्छी तरह नहीं समझा जा सका है।

आईओजीओओएस की भांति ही डब्ल्यूएमओ भी दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की परिघटना को बेहतर ढंग से समझने के लिए कई अन्य कार्यक्रमों को प्रायोजित कर रहा है। इसके कार्यक्रमों के तीन लक्ष्य हैं। पहला है- व्यवस्थित मौसम एवं जलवायु पर्यवेक्षण में सुधार और पिछली जलवायु अवधियों का पुनर्निर्माण। दूसरे और तीसरे लक्ष्य क्रमश हैं- दीर्घकालीन जलवायु अनुमान में विद्यमान अनिश्चितता को घटाने के लिए जलवायु मॉडलों का पुनर्परिभाषित करना और यह सुनिश्चत करना कि जलवायु विज्ञान में प्रगति संपोषणीय विकास में योगदान करे।

डब्ल्यूएमओ ने सावधान भी किया है कि पिछले 15 सालों में जल से पैदा होने वाली आपदाओं की संख्या बहुत बढ गयी है। दुनियाभर में बार बार पड़ने वाले सूखे और मरूद्यानीकरण के कारण 1.7 अरब लोगों की जीविका खतरे में पड़ गयी है। ये लोग अपनी अधिकांश आवश्यकताओं के लिए जमीन पर ही निर्भर हैं। संगठन के अनुसार पिछले कुछ दशकों में जलवायु में हुआ परिवर्तन हमारे जीवन के सम्मुख स्वास्थ्य समेत कई गंभीर और अत्यावश्यक चुनौतियां खड़ा करता रहेगा। संगठन के एक दस्तावेज के अनुसार दुनियाभर के देशों ने अबतक इस बात का एहसास नहीं किया है कि जलवायु की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम नहीं उठाये जाने से भविष्य में जो कीमत अदा करनी पड़ेगी वह अभी की कीमत से कितनी भारी होगी। हालांकि प्रशांत महासागर में अल नीनों जैसी परिघटना है और सूर्य 11 वर्षों के लिए उष्ण दौरे में प्रवेश कर रहा है लेकिन मानव भी जीवाश्म ईंधन जलाकर विश्व का तापमान काफी बढा रहा है। डब्ल्यूएमओ के पूर्व महासचिव प्रो. ओ पी ओबासी ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के उपशमन के लिए जिन कदमों पर विचार किया गया है वे हमारी भावी जलवायु को बचाने के लिए नाकाफी हैं। वह इस बात पर बल देते हैं कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में उचित कमी लाने एवं महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक मुददों के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन प्रारूप संधिपत्र और क्योटो प्रोटोकॉल के साथ मिलकर एकजुट प्रयास करना चाहिए।

इस दिवस पर देश के विभिन्न हिस्सों में बैठकें, संगोष्ठियां और अन्य कार्यक्रम हो रहे हैं जिनमें मौसमविज्ञानी आपस में विचार एवं अनुभव बाटेंगे तथा इसपर चर्चा करेंगे कि इस उभरते विज्ञान के ज्ञान का न केवल भारतीयों बल्कि मानवजाति के कल्याण के लिए कैसे बेहतर उपयोग किया जाए।

स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. विश्व मौसम संगठन (डब्लूएमओ) ने मानव सुरक्षा और कल्याण के लिए बहुत योगदान किया है। पिछले साठ सालों में डब्लूएमओ के सफर और डब्लूएमओ में भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) की भूमिका का जिक्र करते हुए आईएमडी के महानिदेशक डा. अजित त्यागी ने कहा कि डब्लूएमओ, संयुक्त राष्ट्र की विशेषज्ञ एजेंसी है जो पृथ्वी के वातावरण की दशा और व्यवहार, महासागरों के साथ उसका रवैया, उसके द्वारा पैदा किए जाने वाली जलवायु और जल संसाधनों के वितरण के विषय में अध्ययन करती है। डब्लूएमओ 23 मार्च 1950 में अस्तित्व में आया और उसकी सदस्य संख्या 189 है।

पिछले साठ सालों में डब्लूएमओ की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए डा. त्यागी ने कहा कि 1950 ‑ 63 की अवधि संगठन का शुरुआती समय था जिसमें अंतर्राष्ट्रीय भू ‑ भौतिकी वर्ष (1957 ‑ 58) अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान सहयोग का शानदार समय था। इस दौरान पृथ्वी विज्ञान के 11 विषयों पर अनुसंधान किया गया। इस अवधि के दौरान रेडियो टेली टाइपराईटर और अन्य रेडियो ट्रांसमिशन स्टेशनों द्वारा रीयल ‑ टाइम डाटा तथा मौसम मानचित्रों को बनाने व उनके प्रसार का कार्य किया गया।

जहां 1964 ‑ 70 की अवधि में प्रौद्योगिकीय विकास हुआ और विश्व मौसम निगरानी कार्यक्रम बनाया गया वहीं 1971 ‑ 80 की अवधि को नवीन कदमों का दशक कहा जा सकता है। इसी अवधि में ट्रॉपिकल साइक्लोन प्रोजेक्ट (1971) की स्थापना की गई। इसके अलावा 1972 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम भी शुरू किया गया। इसके बाद के दशक (1981 ‑ 90) में पिछले दशक में उठाए गए असंख्य कदमों के सुपरिणाम सामने आए। डॉ0 अजीत त्यागी ने कहा कि 1991-2000 दशक के दौरान तीन प्रमुख सम्मेलन आयोजित किए गए थे। ये - जल और पर्यावरण संबंधी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, 1992, पर्यावरण और विकास संबंधी संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन 1992 और प्राकृतिक आपदा उपशमन दशक 1990-1999। उन्होंने कहा कि 2001-10 अवधि के दौरान जलवायु वैज्ञानिकों के निरन्तर प्रयासों के कारण जलवायु परिवर्तन को विश्व के कार्यक्रम में अग्रणी स्थान दिया गया। इसमें डब्ल्यूएमओ और अन्य भागीदारों की गतिविधियों से भी समर्थन प्राप्त हुआ।

डब्ल्यूएमओ में आईएमडी की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए डॉ. त्यागी ने कहा कि आईएमडी डब्ल्यूएमओ का संस्थापक सदस्य रहा है। यह डब्ल्यूएमओ के तहत क्षेत्रीय संघ-2 (एशिया) के सदस्य के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इस समय आईएमडी ने देश में मौसम संबंधी सेवाओं में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर आधुनिकीकरण कार्यक्रम को हाथ में लिया है। इससे डब्ल्यूएमओ में आईएमडी का महत्त्व और बढ़ जाएगा। आशा है कि आधुनिकीकरण के इस कार्यक्रम से जिला स्तर पर आईएमडी की मौसम संबंधी पूर्वानुमान सेवाएं और पूर्वानुमान का विस्तार 10 से 20 दिन या फिर महीने भर का हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इससे लघु, मध्यम और लम्बी अवधि के पूर्वानुमानों मल्टी हैजर्ड अर्ली वार्निंग, रीयल टाइम डाटा अवैलेबिलीटी, प्रबंध के लिए क्विकर रस्पाँस टाइम, इम्प्रूव्ड स्पाशियल एंड टेम्पोरल कवरेज की बढी हुई शुध्दता और बेहतर ऐवाएं प्राप्त होने की आशा है।




स्टार न्यूज़ एजेंसी देश कुछ ही वर्षों में लधुकालीन एवं दीर्घ कालीन पूर्वानुमानों में ज्यादा सटीकता हासिल कर लेगा। भू-विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ शैलेष नायक ने तिरूवनंतपुरम में 97वें भारतीय विज्ञान कांग्रेस में मौसम जलवायु और पर्यावरण विषय पर अपने संबोधन मे यह बात कही। उनके मुताबिक लघु कालीन पूर्वानुमान में 77 प्रतिशत सटीकता हासिल की जा चुकी है। वर्ष 2012 मे इनसैट 3 डी तथा ओसियन सैट 2 के प्रक्षेपण के बाद इसमें और सुधार आएगा। उन्होंने बताया कि मौसम पर्यवेक्षण तंत्र को बेहतर पूर्वानुमान के लिए उन्नत बनाया गया है। इस साल के अंत तक 650 जिले मौसम पूर्वानुमान के तहत आ जायेंगे, फिलहाल 450 जिले मौसम पूर्वानुमान के तहत हैं। उन्होंने कहा कि मौसम पूर्वानुमान खासकर भारी वर्षा का पूर्वानुमान लगाने के लिए बहुत अधिक आंकड़ों की आवश्यकता होती है ।

तिरूवनंतपुरम (केरल).

डॉ नायक ने कहा कि मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में विशेषज्ञों की कमी है और इसे देखते हुए कम से कम 30-40 व्यक्तियों को मौसम अध्ययन में प्रशिक्षण देने के लिए एक प्रशिक्षण विद्यालय खोला जाएगा। नीति निर्माताओं को बेहतर मौसम पूर्वानुमान प्रदान करने के लिए मौसम अध्ययन जैसे क्षेत्र में व्यापक निवेश की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि नई दिल्ली में आगामी राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान वायु गुणवत्ता तंत्र स्थापित किया जाएगा तथा कार्बन मोनोऑक्साइड, बेंजीन ओजोन तथा नाइट्रोजन के आक्साइडों की उपस्थिति जानने के लिए निगरानी की जाएगी। यदि यह तंत्र सफल रहा तो इसे अन्य महानगरों में भी लगाया जाएगा।

समुद्र के बढ़ते स्तर पर चिंता प्रकट करते हुए डॉ. नायक ने कहा कि 1961-2003 के दौरान दुनियाभर मे समुद्र औसत 1.8 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा। यह दर 1993-2003 के दौरान 3.1 मिलीमीटर से भी अधिक हो गई । भारत महासागर में 2004-08 के दौरान समुद्र स्तर में 9 मिली मीटर की वृध्दि हुई। समुद्र स्तर में वृध्दि के कारण फिलहाल ज्ञात नहीं है और इसके लिए दुनिया भर मे गंभीर अध्ययन चल रहा है। डॉ. नायक के अनुसार लक्षद्वीपों के क्षरण का कारण समुद्र स्तर में वृध्दि हो सकती है।


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