दिखूंगी एक बूंद ही,
निकाल पड़ी एक राह पर
जा मिलूंगी धूल में !
बहकर हल्का करती हूं मन
बरस कर देती हूं मुस्कराहटें !
दिखती हूं कमल के फूल पर
एक मोती सी लगती हूं दूर से !
घर छोड़ते हैं सभी
मांगता हिसाब जब खुदा हमसे
पूछेगा कभी नहीं मुझसे
क्योंकि,
मैं तो मिल चुकी हूं
सबकी किलकारियों में !
-बिंदु चोपड़ा
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